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अनेकान्त/54-1
देश में जहां-जहां अग्नि फैलता है प्रजाएं उसकी अनुगामी होकर उस प्रदेश में भर जीती हैं... इस प्रकार समग्र भूमि भरत अग्नि का व्यापक क्षेत्र बन गई और यही भरतक्षेत्र भारत कहलाया ।" इस व्याख्या को पुराणों ने स्वीकार नहीं किया और ऋषभ के पुत्र भरत के नाम पर भारत स्वीकार किया।
दूसरी व्युत्पत्ति मनु भरत के संबंध में उन्होंने लिखा था कि प्राचीन अनुश्रुति के अनुसार "सब प्रजाओं का भरण करने और उन्हें जन्म देने के कारण मनु को भरत कहा गया। नाम की उस निरुक्ति के अनुसार यह वर्ष भारत कहलाया... ऋग्वेद काल में भरत आर्यों की एक प्रतापी शाखा या जन की संज्ञा थी । " यदि श्री शर्मा का संकेत इस व्युत्पत्ति की ओर है, तो वह भी पुराणों में स्वीकृत नहीं हुई।
वैदिक आर्यो ने तो अपने देश को सप्तसिंधु ( सात नदियों का देश ) कहा है। उसकी सीमा में काबुल, सिंध, पंजाब और कश्मीर आते थे। इस छोटे-से प्रदेश के बाशिंदों ने अपने प्रदेश का भी नाम बदल कर शेष अज्ञात पूरे भारत को भारतवर्ष नाम दे दिया होगा यह विश्वसनीय नहीं जान पड़ता। समर्थन में पं. कैलाशचंद की पुस्तक से एक उद्धरण प्रस्तुत है- " ऋग्वेद में सप्तसिंधव देश की ही महिमा गाई गई है। यह देश सिंधु नदी से लेकर सरस्वती नदी तक था। ( सरस्वती नदी का नाम तो ऋग्वेद में केवल एक बार ही आया है।) इन दोनों नदियों के बीच में पूरा पंजाब और काश्मीर आता है तथा कुभा नदी जिसे आज काबुल कहते हैं, उसकी भी वेद में चर्चा है। अतः अफगानिस्तान का वह भाग जिसमें काबुल नदी बहती है, आर्यो के देश में गर्भित था । यह सप्तसिंधव देश ही आर्यो का आदि देश था। (आ. आ. 33 ) [ आर्यो का आदि देश, संपूर्णानंद ] किंतु प्राच्य भाषाविद् डॉ. सु. चटर्जी का कहना है कि प्राचीन रूढ़िवादी हिंदू मत कि आर्य भारत में ही स्वयंभूत हुए थे विचारणीय ही नहीं है ( भा. आ.हिं. पृ. 20) [भारतीय आर्यभाषा और हिंदी ] ''
तीसरी व्युत्पत्ति दुष्यन्त संबंधी है। दुष्यन्त पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष नहीं कहलाया क्योंकि उसका तो वंश ही नहीं चला। उसके तीन पुत्रों को उसकी रानियों ने मार डाला था। इसलिए कि वे उसके अनुरूप नहीं थे (भागवत पुराण) और ऋषियों ने दुष्यन्त के वंश का अंत होने की स्थिति आ जाने पर उसे एक लड़का लाकर दिया था जो भरद्वाज
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