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________________ 38 पाण्डित्य, दीर्घ आयु और आरोग्य यह सब धर्म का ही फल है। जिस प्रकार कारण के बिना कार्य की उत्पत्ति नहीं होती, दीपक के बिना प्रकाश नहीं, बीज के बिना अंकुर नहीं, मेघ के बिना बादल नहीं, छत्र के बिना छाया नहीं, ठीक वैसे ही बिना धर्म के सम्पत्तियाँ भी नहीं होतीं। यथा अनेकान्त / 54-1 २०२ धर्मादिष्टार्थसंपत्तिस्ततः कामसुखोदयः । स च संप्रीतये पुंसां धर्मात् सैषा परम्परा ॥ 15 / 151 राज्यं च संपदो भोगाः कुले जन्म सुरूपता । पाण्डित्यमायुरारोग्यं धर्मस्यैतत् फलं विदुः ॥5 / 161 न कारणाद् विना कार्यनिष्पत्तिरिह जातुचित् । प्रदीपेन बिना दीप्तिर्दृष्टपूर्वा किमु क्वचित् ॥ 15/17॥ नाङ्कुरः स्याद् बिना बीजाद् बिना वृष्टिर्न वारिदात् । छत्राद् बिनापि नच्छाया बिना धर्मान्न संपदः 115/1611 और भी दयामूलो भवेद् धर्मो दया प्राण्यनुकम्पनम्। दयाया: परिरक्षार्थ गुणाः शेषाः प्रकीर्तिताः ॥15/2111 धर्मस्य तस्य लिङ्गानि दमः क्षान्तिरहिंस्त्रता । तपो दानं च शीलं च योगो वैराग्यमेव च ।15/ 2211 अहिंसा सत्यवादित्वमचौर्यं त्यक्तकामता ॥ निष्परिग्रहता चेति प्रोक्तो धर्मः सनातनः ॥15/2311 वस्तुतः चैतन्य शरीर स्वरूप नहीं है और न शरीर चैतन्य रूप ही है। इन दोनों का परस्पर विरुद्ध स्वभाव है। चैतन्य चित् स्वरूप और ज्ञान दर्शन रूप है। शरीर अचित् स्वरूप और जड़ है। शरीर और चैतन्य दोनों मिलकर एक नहीं हो सकते, क्योंकि दोनों में परस्पर विरोधी गुणों का योग है। चैतन्य का प्रतिभास तलवार के समान अंतरंग रूप होता है और शरीर का म्यान के समान बहिरंग रूप। प्रतिभाष भेद से दोनों भिन्न-भिन्न हैं एक नहीं । कायात्मकं न चैतन्यं न कायश्चेतनात्मकः । मिथो विरुद्धधर्मत्वात् तयोश्चिदचिदात्मनोः ॥5/51॥ $2830303 204
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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