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अनेकान्त/54/3-4
15. "णिदंदडो णिवन्द्वो णिम्ममो णिक्कलो णिरालंबो।
णीरागो णिद्दोसो णिम्मूढो णिभयो अप्पा।।", नियमसार, 43 16. “एइदियस्य फसणं एक्कं चिय होइ सेस जीवाणं।
एयाहिया य तत्तो जिब्भाघाणक्खि सोत्ताई।।", पंचास्तिकाय, 1/67 17. "सज्ञिनः समनस्काः ।", तत्वार्थसूत्र, 2/24
- प्रवक्ता-संस्कृत दि. जैन कॉलेज, बड़ौत
उपादान एक और सहकारी अनेक उपादान एक और सहकारी अनेक होते हैं। जैसे घट की उत्पत्ति में उपादान कारण मृत्तिका और सहकारी कारण दण्ड-चक्र-चीवर-कुलालादि हैं। यद्यपि घट की उत्पत्ति मृत्तिका में होती है, अत: मृत्तिका ही उसका उपादान कारण है, फिर भी कुलालादि कारण कूट के अभाव में घट रूप पर्याय मृत्तिका में नहीं देखी जाती, अतः ये कुलालादि घटोत्पत्ति में सहकारी कारण माने जाते हैं। इसीलिए प्राचीन आचार्यों ने जहाँ कारण के स्वरूप का निर्वचन किया है, वहाँ 'सामग्री जनिका कार्यस्य नैकं कारणं' अर्थात् सामग्री ही कार्य की जनक है, एक कारण नहीं, यही तो लिखा है। अतः इस विषय में कुतर्क करना विद्वानों को उचित नहीं। यहाँ पर मुख्य गौण न्याय की आवश्यकता नहीं। वस्तु स्वरूप जानने की आवश्यकता है, 'अन्वय व्यतिरेकगम्यो हि कार्य कारणभावः' अर्थात् कार्यकारण भाव अन्वय व्यतिरेक दोनों से जाना जाता है, अत: दोनों ही मुख्य है। जब उपादान की अपेक्षा कथन करते हैं तब घट का उपादान मिट्टी है और निमित्त की अपेक्षा निरूपण किया जाए तो कुलालादि कारण
- पूज्य गणेशप्रसाद जी वर्णी, मेरी जीवन गाथा-भाग 2, 195-196
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