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________________ 22 अनेकान्त/54-1 ऊपर 7050 धनुष जाकर सिद्धों का आवास है, जहां से आगे धर्म द्रव्य का अभाव है। इस लोक का आकार करणानुयोग के ग्रंथ कहते हैं धवल रंग वाला उत्तान छत्र या उत्तान चषक जैसा है जिसका अर्थ ब्र. अशोक जी ने सही किया है। क्या वह शिला सीधी कटोरी की तरह है या उल्टी कटोरी की तरह? उत्तान रंग धवल है तो फिर चंदन केसर से उसकी आकृति बनाना भी समुचित नहीं है। 5. चूंकि सर्व कर्म बंधन मुक्त शुद्ध आत्माओं के भी दो बंधन हैं-(1) वे केवल उर्ध्वगामी ही हो सकती है और (2) वहीं तक जाकर सदा के लिए रुकी रहती है, जहां तक धर्म द्रव्य है। अतः मौजूदा प्रतीक में परिवर्तन ही करना है, तो मेरे हिसाब से इस जगह की सही अवधारणा यों की जानी चाहिए 45 लाख याजन 12 योजन गघ वह पंक्ति है जो स्वर्गो का अंतिम छोर है और कख व पंक्ति है जिसके आगे धर्म द्रव्य नहीं है; अत: सिद्ध लोक उक्त कखगघ एक मंजूषा जैसा है। कख व गघ की लम्बाई 45 लाख योजन व कग व खघ की ऊंचाई/चौड़ाई 12 योजन है इसी क्षेत्र को सिद्धालय, मुक्ति धाम, अप्टम वसुधा और शिवपुर विश्राम आदि भी कहते हैं। सिद्धों की पूजाओं में भी सिद्ध शिला का जिकर नहीं है। इस मोक्ष स्थान का नाम सिद्ध शिला कब और क्यों चल पड़ा यह विचारणीय है। इस सिद्ध लोक के बीच में भगवान ऋषभदेव के 500 धनुष लम्बाई वाले आत्म प्रदेश विराजमान होने चाहिए। पुराणों के अनुसार मानव की यही ज्ञात सबसे अधिक ऊंचाई है और उसके आस पास ही उन आत्माओं के प्रदेश होने चाहिए जो सबसे पहले मुक्ति धाम पहुंची। उसके बाद 'एक में एक समाय' के अनुसार इसी क्षेत्र में असंख्य आत्माएं समाकर अनंत आनन्द का अनुभव कर रही हैं। यदि ऐसा तसव्वुर न किया जाए, तो फिर Sacoscecececececececececececececece
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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