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अनेकान्त/54-1
इसकी टीका में उत्तान छत्र का उत्तान स्थित पात्र या चषक के समान ऐसा अर्थ किया है। इसके मध्य में रजत छत्राकार सिद्धक्षेत्र स्थित है।
कहां है यहां सिद्धशिला का नाम? इसी प्रकार तिलोयपण्णत्ति 8/657 में - उत्ताण धवल छत्तोवसाणं संठाण सुदरं एदं। पंचात्तालं जोयण लक्खाणि वाससंजुत्तं।
यह क्षेत्र (न कि शिला) 45 लाख योजन प्रमाण उत्तान धवल छत्र के सदृश है और सुंदर है। हरिवंश पुराण 6/128 में - सोत्तनित महावृत श्वेत छत्रोपमाकृतिः
विशाल गोल सफेद उत्तनित छत्र की आकृति की आठवीं पृथ्वी है-कहां है यहां शिला?
सिद्धान्तसार दीपक 16/4 व प्रतिक्रमण ग्रंथत्रयी पृष्ठ 28 पंक्ति में अवश्य ही ईषत्प्राग्भार (आठवीं भूमि) में बीच में मोक्ष शिला होना बताया गया है। कहां है? यहां भी सिद्ध शिला का नाम?
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष भाग 3 पृ. 323-324 पर सिद्ध लोक का वर्णन है न कि सिद्ध शिला का।
इस सिद्ध क्षेत्र के सिलसिले में क्षपणासार गाथा 258 व जय धवला पु. 16 पृ. 193 दोनों में भी सिद्ध शिला का नाम नहीं है। ईषत् प्राग्भार व सुधा का वर्णन है। ___भगवान् वृषभ देव के निर्वाण के बारे में आदि पुराण 47/341 लिखता
शरीर त्रितयापाये प्राप्य सिद्धत्व पर्ययम्। निजाष्टगुण सम्पूर्णः क्षणाप्त तनुवातकः॥
तीनों शरीरों के नाश होने से सिद्धत्व पर्याय प्राप्त कर वे निज के आठ गुणों से युक्त हो क्षण भर में ही तनुवातवलय में जा पहुंचे।