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________________ 60 अनेकान्त/54/3-4 श्वेताम्बरचार्य गुणाकर ने भक्तामर स्तोत्र वृत्ति, जिसकी रचना वि.सं. 1426 में हुई है, में प्रभावक चरित के अनुसार मयूर और बाण को श्वसुर और जमाता बनाया है तथा इनके द्वारा रचित सूर्यशतक और चण्डीशतक का निर्देश किया है। राजा का नाम वृद्धभोज है, जिसकी सभा में मानतुंग उपस्थित हुए थे। संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध इतिहासज्ञ विद्वान डॉ. ए.वी. कीथ ने मानतुंग को बाण का समकालीन अनुमान किया है।' उन्होंने भक्तामर की कथा के संबंध में अनुमान किया है कि कोटरियों के ताले या पाशबद्धता संसार बन्ध न का रूपक है। इस प्रकार के रूपक छठी-सातवीं शताब्दी में अनेक लिखे गये हैं। डॉ. कीथ का अनुमान यदि सत्य है तो इसका रचनाकाल छठी शताब्दी का उत्तरार्द्ध या सातवीं का पूर्वार्द्ध होना चाहिये। पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य ने महापुराण की प्रस्तावना पृ. 22 में आचार्य मानतुंग की 7वीं शताब्दी का लिखा है। अगर यही समय है तो आदिपुराण पर्व 7 श्लोक 293 से 311 का जो वर्णन भक्तामर स्तोत्र से मिलता हुआ है वह संभव है आचार्य जिनसेन ने भक्तामर स्तोत्र से लिया हो। सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ पं. गौरीशंकर हीराचन्द ने अपने 'सिरोही का इतिहास' नामक ग्रन्थ में मानतुंग का समय हर्षकालीन माना है। सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ पं. नाथूराम प्रेमी, जिन्होंने विश्वभूषण भट्टारक के भक्तामर चरित को प्रमाणभूत मानकर धाराधीश भोज, कालिदास, धनंजय मानतुंग, भर्तृहरि आदि भिन्न-भिन्न समयवर्ती विद्वानों को समकालीन बताने का प्रयत्न किया था। परन्तु जब भट्टारकों द्वारा निर्मित कथा साहित्य की ऐतिहासिकता पर सन्देह होने लगा तब आठ-दस वर्ष बाद उन्होंने अपनी ही बातों का प्रतिवाद कर दिया। "प्रेमीजी ने मानतुंग आचार्य को हर्षकालीन माना इस प्रकार हम देखते हैं कि परस्पर विरोधी आख्यानों के कारण आचार्य
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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