SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त/54/3-4 काव्य के तीन पाद बार-बार कहते सुनकर बाण ने चौथा चरण बनाकर कहा-हे चण्डि! कुंचों के निकटवर्ती होने से तुम्हारा हृदय भी कठिन हो गया 'गतप्राया रात्रिः कृशतनुः शशिः शीर्यत इव प्रदीपोऽयं निद्रावशमुपगत घूर्णित इव। प्रणामान्ते मानस्त्यजसि न तथापि क्रुधमहो कुचप्रत्यासत्या हृदयमपि ते चण्डि! कठिनम्॥ भाई के मुख से चौथा चरण सुनकर बहन लज्जित हो गयी और अभिशाप दिया कि तुम कुष्ठी हो जाओ। बाण पतिव्रता के शाप से तत्काल कुष्ठी हो गया। प्रात:काल शाल से शरीर ढककर राजसभा में आया। मयूर ने 'वरकोढ़ी' कहकर उसका स्वागत किया। बाण ने देवताराधन का विचार किया और सूर्य के स्तवन द्वारा कुष्ठरोग दूर किया मयूर ने भी अपने हाथ पैर काट लिये और चण्डिका का 'मां भाक्षी विभ्रमम्' स्तुति द्वारा अपना शरीर स्वस्थ कर चमत्कार उपस्थित किया। इन चमत्कारों के अनन्तर किसी जैन धर्मद्वेषी ने राजा से कहा कि यदि जैनों में कोई ऐसा चमत्कारी हो तभी जैन यहाँ रहें, अन्यथा इन्हें नगर से निर्वासित कर दिया जाय। मानतुंग आचार्य को बुलाकर राजा ने कहा कि आप अपने देवताओं के कुछ चमत्कार दिखलाइये। आचार्य ने कहा हमारे देवता वीतरागी हैं उनमें क्या चमत्कार हो सकता है। जो मोक्ष चला गया है वह चमत्कार दिखलाने क्या आयेगा? उनके किंकर देवता ही अपना प्रभाव दिखलाते हैं। अत: यदि चमत्कार देखना है तो उनके किंकर देवता से अनुरोध करना होगा। इस प्रकार कहकर अपने शरीर को 44 हथकड़ियों और बेड़ियों से कसवाकर उस नगर के श्री युगादिदेव के मन्दिर के पिछले भाग में बैठ गये। भक्तामर स्तोत्र के प्रभाव से उनकी बेड़ियां टूट गयीं और मन्दिर अपना स्थान परिवर्तित कर उनके सम्मुख उपस्थित हो गया। इस प्रकार मानतुंग ने जिनशासन का प्रभाव दिखलाया।
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy