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अनेकान्त/54-1
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नहीं, अपितु विचित्रता देखी जाती है और इसका कारण भावों की विषमता
द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा को इस रूप में भी अभिव्यक्त किया गया है - उच्चालिदम्मि पादे इरियासमिदस्स णिग्गमट्ठाणे। आवादेज्ज कलिंगो मरेज्ज तं जोगमासेज्ज।। ण हि तस्स तण्णिमित्तो बंधो सुहमो विदेसिदो समये। जम्हा सो अपमत्तो सा उ पमाउ त्ति णिद्दिट्ठा। -गमन सम्बन्धी नियमों का सावधानी से पालन करने वाले संयमी ने जब अपना पैर उठाकर रखा, तभी उसके नीचे कोई जीव-जन्तु चपेट में आकर मर गया, किन्तु इससे शास्त्रानुसार उस संयमी को लेशमात्र भी कर्मबन्धान नहीं हुआ; क्योंकि संयमी ने प्रमाद नहीं किया; और हिंसा तो प्रमाद से ही होती है।
भगवान महावीर ने अहिंसा की शक्ति को पहचाना। उन्हीं की भावनानुसार महात्मा गांधी कहा करते थे कि-"अहिंसा कायर का नहीं, बलवान का शस्त्र है।" अहिंसा का लक्ष्य शान्ति की स्थापना है चाहे वह आन्तरिक हो या बाह्य। संसार में अनेक प्रकार के धर्म प्रचलित हैं, किन्तु उन सब धर्मो का यदि लघुत्तम निकाला जाय तो वह अहिंसा ही होगा; भले ही वे इसे स्थूल रूप में मानते हों या सूक्ष्म रूप में। मनुष्य तो क्या तिर्यञ्च भी अहिंसा को स्वीकारते हैं। यहां तक कि क्रूरतम प्राणियों में भी अहिंसक भावना विद्यमान होती है। बिल्ली और शेरनी भी अपने बच्चों को नहीं खाते। अहिंसा कायरता नहीं है। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनुसार-"यह जमाना हथियार बन्द कायरता का है। कायरता ने अपने हाथ में हथियार इसलिए रखे हैं कि वह दूसरों के हमलों से डरती है और स्वयं हथियार इसलिए नहीं चलाती क्योंकि उसकी हिम्मत नहीं होती। जो डर के मारे हथियार चला नहीं पाती, उसी का नाम कायरता है। इस कायरता से इंसान को उबारने वाली एक ही शक्ति है और उसका नाम है-अहिंसा।"
हिंसा किसी भी समस्या का समाधान न कभी थी, न कभी हो सकती है। कभी-कभी हिंसा में हो रही वृद्धि देखकर व्यक्ति परेशान हो उठता है, किन्तु वास्तविकता में हिंसा हार रही है। 'हिरोशिमा' और 'नागासाकी'