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________________ अनेकान्त/54/3-4 18. तस्य निचकालं रज्ज कारेत्वा वसंमानं येव राजन सतसहस्सानि सतसतानि तत्र च। राजानो होति तत्त का, ये व उपराजाओं तत्तका, सेनापतिनो तत्तका, तत्तका भंडागारिका। JI.SO.4. 19. नोच्च-मध्य-वृद्ध-ज्येष्ठानुपालिता, एकैक एव मन्यते अहं राजा, अहं राजेति, न __च कस्यच्छिष्यत्वमुपगच्छति। 20. वैशाली-नगरे गणराजकुलानां अभिषेकमंगलपोखरिणी-जातक 41148 21. डॉ. ए.एस. अल्तेकर-प्राचीन भारत में राज्य एवं शासन (1958) पृष्ठ 112--113 22. गृहे-गृहे तु राजानः-महाभारत 211512 23. वाजपेयी, अम्बिका प्रसाद, हिन्दू राज्यशास्त्र-पृष्ठ 1041 24. "तेन रयो पन समयेन राजा मागधो सेनियो बिम्बसारो असीतिया नाम सहस्सेष इस्सराधिपच्च राजं करोति।" श्री भरतसिंह उपाध्याय द्वारा उद्धृत-वही-पृष्ठ-169 25. वही-पृष्ठ 95-961 26. वही-पृष्ठ 106 पर उद्धृत। निवास-बी-1/324, जनकपुरी, नई दिल्ली-110058
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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