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अनेकान्त /54/3-4
7. काम्बोज सुराष्ट्र क्षत्रिय श्रेण्यादयो वार्ताशस्त्रोपजीविनः लिच्छित्रिक-वृजिकमल्लक- कुकुर - पाञ्चालादयो राजशब्दोपजीविनः ।
8. बी. ए. सालेतोर - ऐंशियेंट इण्डियन पोलिटिकल थौट एण्ड इन्स्टीट्यूशंस ( 1963 ) पृष्ठ 509.
9. बी. सी. ला - हिस्टोरिकल ज्योग्रैफी ऑफ ऐंशियेंट इण्डिया, फाइनेंस' में प्रकाशित (1954) पृष्ठ 2661
11. वही - पृष्ठ 266-671
12. झल्लो मल्लाश्च राजन्याः व्रात्यानि लिच्छिविरेवधो नटश्च करणश्च खसो द्रविण एव च। 10122
13. भरतसिंह उपाध्याय - वही- पृष्ठ 331
14. री डेबिड्स (अनुवाद) बुद्ध-सुत्त (सेक्रिड-बुक्स ऑफ ईस्ट - भाग 11 - मोतीलाल बनारसीदास, देहली पृष्ठ 2-3-41
15. पालि- पाठ राधाकुमुद मुखर्जी के ग्रन्थ 'हिन्दू सभ्यता' (अनुवादक - डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल) द्वितीय संस्करण 1958 - पृष्ठ 199-200 से उद्धृत । नियम संख्या मैंने दी है।
16. वही - पृष्ठ 6-71
17. देखिए श्री भरतसिंह उपाध्याय - कृत 'बुद्धकालीन भारतीय भूगोल' (पृष्ठ 385-86) का निम्नलिखित उद्धरण ("संयुक्त निकाय पृष्ठ 308 से उद्धृत । “भिक्षुओं! लिच्छवि लकड़ी के बने तख्ते पर सोते हैं। अप्रमत्त हो, उत्साह के साथ अपने कर्तव्य को पूरा करते हैं। मगधराज वैदेही - पुत्र अजातशत्रु उनके विरुद्ध कोई दाव-पेंच नहीं पा रहा है। भिक्षुओं! भविष्य में लिच्छवि लोग बड़े सुकुमार और कोमल हाथ-पैर वाले हो जायेंगे। वे गद्देदार विछावन पर गुलगुले तकिए लगाकर दिन चढ़े तक सोये रहेंगे। तब मगधराज वैदेहि-पुत्र अजातशत्रु को उनके दाँव-पेंच मिल जायेगा । "