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अनेकान्त/54/3-4
मुक्त हो गए। काशी-कौशल के अठारह संघीय राजाओं, नव मल्लों तथा नव लिच्छवियों ने चन्द्रोदय (द्वितीया) के दिन प्रकाशोत्सव आयोजित किया; क्योंकि उन्होंने कहा 'ज्ञान की ज्योति बुझ गई है, हम भौतिक संसार को आलोकित करें। __2500वें महावीर-निर्वाणोत्सव के सन्दर्भ में आधुनिक भारत वैशाली से प्रेरणा प्राप्त कर सकता है। अनेक सांस्कृतिक कार्य-कलाप वैशाली पर केन्द्रित हैं। इसी को दृष्टिगत करके राष्ट्र-कवि स्व. श्री रामधारी सिंह दिनकर ने वैशाली के प्रति श्रद्धांजलि निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत की है
वैशाली जन का प्रतिपालक, गण का आदि विधाता। जिसे ढूंढ़ता देश आज, उस प्रजातन्त्र की माता।। रुको एक क्षण, पथिक! यहाँ मिट्टी को सीस नवाओ। राज-सिद्धियों की सम्पत्ति पर, फूल चढ़ाते जाओ।।
सन्दर्भ
1. मुनि नथमल-श्रमण महावीर, पृ. 303 2 इदं पच्छिमक आनन्द! तथागतस्स बेसालिदस्सनं भविस्यति। 3. उपाध्याय श्री मुनि विद्यानन्द-कृत 'तीर्थकर वर्धमान' से उद्धृत
यं स भिक्खवे! भिक्खनं देवा तावनिसा अदिट्ठा, अलोकेथ भिक्खवे! लिच्छवनी परिसं, अपलोकेथ। भिक्खवे! लिच्छवी परिसरं! उपसंहरथ भिक्खवे।
लिच्छवे! लिच्छवी परिसरं तावनिसा सदसन्ति।। 4. श्री काशी प्रसाद जायसवाल-'हिन्दू पोलिटी'-पृष्ठ 40. (चतुर्थ संस्करण) 5. पुरातत्व-निबन्धावली-20 6. रे चौधुरी, पोलिकटकल हिस्ट्री ऑफ ऐंशियेंट इण्डिया-कलकत्ता विश्वविद्यालय,
छठा संस्करण, 1953, पृष्ठ 95।