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________________ 30 अनेकान्त/54/3-4 राजकुलों में शत्रुता की उत्पत्ति के मूल कारण हैं-लोभ एवं ईर्ष्या-द्वेष! कोई (गण या कुल) लोभ के वशीभूत होता है, तब ईर्ष्या का जन्म होता है और दोनों के मेल से पारस्परिक विनाश होता है।" - वैशाली पर आक्रमण के अनेक कारण बताए गए हैं। एक जैन कथानक के अनुसार, सेयागम (सेचानक) नामक हाथी द्वारा पहना गया 18 शृंखलाओं का हार इसका मूल कारण था। बिम्बसार ने इसे अपने एक पुत्र वेहल्ल को दिया था परन्तु अजातशत्रु इसे हड़पना चाहता था। वेहल्ल हाथी और हार के साथ अपने नाना चेटक के पास भाग गया। कुछ लोगों के अनुसार, रत्नों की एक खान ने अजातशत्रु को आक्रमण के लिए ललचाया। यह भी कहा जाता है कि मगध-साम्राज्य तथा वैशाली-गणराज्य की सीमा गंगा-तट पर चुंगी के विभाजन के प्रश्न पर झगड़ा हो गया। अस्तु, जो भी कारण हो; इतना निश्चिय है कि अजातशत्रु ने इसके लिए बहुत समय से बड़ी तैयारियाँ की थीं। सर्वप्रथम उसने गंगा-तट पर पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) की स्थापना की। जैन विवरणों के अनुसार, यह युद्ध सोलह वर्षों तक चला, अन्त में वैशाली गणतन्त्र मगध-साम्राज्य का अंग बन गया। क्या वैशाली-गणराज्य के पतन के बाद लिच्छवियों का प्रभाव समाप्त हो गया? इस प्रश्न का उत्तर नकारात्मक हो सकता है परन्तु श्री सालेतोर (वही पृष्ठ 508) के अनुसार, "बौद्ध साहित्य में इनका सबसे अधिक उल्लेख हुआ है क्योंकि इतिहास में एक हजार वर्षों से अधिक समय तक इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण रही।" श्री रे चौधरी के अनुसार, "ये नैनपाल में 7वीं शताब्दी में क्रियाशील रहे। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त 'लिच्छवि-दौहित्र' कहलाने में गौरव का अनुभव करते थे।" 2500 वर्ष पूर्व महावीर-निर्वाण के अनन्तर, नवमल्लों एवं लिच्छवियों ने प्रकाशोत्सव तथा दीपमालिका का आयोजन किया और तभी से शताब्दियों से जैन इस पुनीत पर्व को 'दीपावली' के रूप में मनाते हैं। कल्प-सूत्र के शब्दों में, "जिस रात भगवान महावीर ने मोक्ष प्रापत किया, सभी प्राणी दु:खों से
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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