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________________ अनेकान्त/54-1 13 भगवान् महावीर की अहिंसा के निहितार्थ - डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन 'भारती' आज विज्ञान को श्रेय देने की होड़ है; किन्तु विज्ञान ने जो दिया वह हिंसा का कारक और कारण अधिक है, अहिंसा का कम। सबसे बड़ा विज्ञान तो अहिंसा का विज्ञान है, जो सबको सुख देता है और सबको सुखी रहने देता है। प्रसिद्ध फ्रेंच लेखक रोम्या रोला ने लिखा है कि"The Rishis who discover the law of Non Violence anongst the violence have greater genious than Newton and they are greater war icr the weingtan." अर्थात् जिन ऋषियों ने हिंसा के सिद्धान्त में से अहिंसा के सिद्धान्त का आविष्कार किया वे न्यूटन से बड़े वैज्ञानिक एवं बेलिंगटन से बड़े योद्धा थे। इस दृष्टि से संसार के सुपर वैज्ञानिक एवं योद्धा भगवान् महावीर ठहरते हैं, जिन्होंने हिंसक वातावरण और हिंसकों की बहुलता की परवाह न करते हुए अहिंसा को धर्म के रूप में प्रतिष्ठित किया। उनका यह निषेधात्मक स्वर सबसे बड़ा विधेयात्मक स्वर बन गया, जिसने विगत लगभग 2600 वर्षों में जन-जीवन, पशु-प्रकृति, जलचर, नभचर, भृचर, सभी के अस्तित्व की रक्षा सुनिश्चित की। क्रूर आततायियों की हिंसा भी इस स्वर को दबा नहीं पायी। भगवान् महावीर ने कहा कि प्रमाद के वशीभूत होकर प्राणघात करना हिंसा है- “प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा।" यह हिंसा दो प्रकार की कही गयी है- (1) द्रव्यहिंसा (2) भावहिसा। किसी जीव का शरीर से घात कर देना, मार डालना या उसके अंग-उपांगों को पीड़ा पहुंचाना द्रव्य हिंसा है, इसे कायिकी हिंसा भी कहते हैं। अपने मन से किसी के प्राण हरने, दु:ख पहुंचाने, यातना देने का विचार करना भाव हिंसा है। हिंसा के चार अन्य भेद भी कहे गये हैं- (1) आरम्भी हिंसा (2) उद्योगी हिंसा (3) संकल्पी हिंसा (4) विरोधी हिंसा। इनमें से गृहस्थ आरम्भी हिंसा गृहस्थोचित कार्यो की अनिवार्यता के कारण बचा नहीं पाता, उद्योगी हिंसा से भरसक बचने का प्रयत्न करता है, विरोधी हिंसा कभी-कभार मजबूरी SCc3SCISCESSSSOCIETIESEcs
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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