________________
12
अनेकान्त/54-1 cosececececececececececececececececo समाज और पूरा देश देखा करता था। क्या आयोजकों ने इस पर विचार करने का कष्ट उठाया है कि इस सम्मान से पूरे देश की दिगम्बर जैन समाज को क्या संकेत और संदेश जायेंगे? हमारा दृढ़ मत है कि कहानजी पंथ पर यह ऐसी मोहर सिद्ध होगी, जो पूरे देश में प्रमाण के रूप में प्रस्तुत की जायेगी। आश्चर्य इस बात का भी है कि अनेक परम्परानिष्ठ
और तत्त्ववेत्ताओं के रहते हुए भी यह सम्मान की योजना बनी और जहाँ इसकी फलश्रुति के रूप में निश्चित ही भावी तीर्थंकर यह देख और जानकर प्रमुदित होंगे कि जो कार्य वे अधूरा छोड़ आए थे उसे उनका सोनगढ़ मिशन का प्रतिनिधि गणधर के रूप में पूरा कर रहा है वहीं दिल्ली की दिगम्बर जैन समाज को यह गौरव भी मिलेगा कि उसने एक ऐसी परम्परा के मार्ग को प्रशस्त किया जिसके लिए कहानपंथी चार-पांच दशकों से जूझ रहे थे और जो दिगम्बर परम्परा के लिए वास्तव में घातक था।
इस प्रकार विगत दशकों में दिगम्बर जैन धर्म के लिए सोनगढ़ का उदय एक ऐसे जख्म के रूप में उभर कर आया है, जिसने जिनशासन के मूल को ही समाप्त करने का उपक्रम किया है। स्वयम्भू तीर्थकर के बाद चम्पा बहिन और उसके बाद सोनगढ़ मिशन के प्रतिनिधि के माध्यम से चलने वाले कूटनीतिक चालों से जैनागम को जो आघात पहुँचा है उसकी भरपाई तो क्रमबद्ध पर्याय से नहीं होने वाली। अब भी, यदि लोग नहीं चेते तो दिगम्बर जैन धर्म के मूल स्वरूप का भावी रूप निश्चित रूप से ऐकान्तिक अध्यात्म परक होगा और चारित्र-जो जैन धर्म का प्राण है-उसकी घोर उपेक्षा होगी। अस्तु, इस सोनगढ़ (कांजीपंथ ) के नासूर को फैलने से पहले ही आप्रेशन की सक्षम पहल होनी चाहिए तभी भगवान् महावीर के 2600वे जन्मोत्सव को मनाने की सार्थकता होगी।
कहीं ऐसा न हो कि भावावेश में हम अपने विवेक को भूल जायें और आने वाली पीढ़ियां हमें क्षमा न करें क्योंकि इस भूल का फिर निराकरण चाहकर भी नहीं कर सकेंगे।
__-261/3, पटेल नगर, नई मण्डी, मुजफ्फरनगर-251001