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________________ अनेकान्त/54-2 वे अपने सतीत्त्व के महत्व से, सदाचार से व विवेक से धरातल को विभूषित करती हैं। आदि पुराण 24/175-177 से पता चलता है कि भगवान् ऋषभ देव ने अपनी दोनों पुत्रियों व अनेक राजकन्याओं को दीक्षा दिलवाई थी, जिसमें से बड़ी पुत्री तो उनकी प्रमुख गणिनी भी बनी और देवों ने उनकी पूजा की। इसके बावजूद वनिता विरोधी जैन शास्त्र कहते हैं कि स्त्रियों के संयम नहीं है, न वे दीक्षा की हकदार और शील पाहुड़ (29) में तो हद कर दी - सुणहाण गद्हाण व गोपसु महिलाण दीसदे मोक्खो। जे सोधंति चउत्थं विच्छिज्जंता जणेहिं सव्वेहि।। 29 - श्वान, गधा, गाय और महिलाओं के मोक्ष होता किसी ने देखा है? इसे भी दे रहे हैं आगम का दर्जा। दरअसल सत्य तो यह है कि कोई भी पाहुड़ कुन्दकुन्द की कृति नहीं है और ये वचन उसी कोटि के हैं जैसे कि कोई कहे कि क्या वर्तमान काल में किसी गधे, कुत्ते, सुअर, बैल और पुरुष को भी मोक्ष होते देखा है किसी नारी विरोधी ने। दर्शन पाहुड की जिस गाथा (18) ने बेनाड़ा जी ने अपने विचारों की नींव रखी है, वह इस प्रकार है - एगं जिणवरस्स रूवं वीयं उक्किट्ठ सावयाणं अवरट्ठियाणं तइय्यं चउत्थ पुण लिंगदसणं णत्थि इसका सीधा अर्थ है - एक जिनवर का रूप दूसरा उत्कृष्ट श्रावक तीसरा अवरस्थित चौथा कोई लिंग दर्शन में नहीं है। अवरट्ठियाणं का अर्थ पूर्ववर्ती वनिता विरोधी विद्वानों के अनुसरण में किया गया है-जघन्य पद में स्थित आर्यिका, जब कि गाथा में न जघन्य शब्द है, न आर्यिका है, न ही है उत्तम मध्यम व जधन्य शब्दावली। यदि यही अर्थ सही है तो फिर श्राविकाओं और सामान्य श्रावकों का वेष कौन SSS SSSOC222222222222
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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