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अनेकान्त/54-2
एवं विधाणचरियं चरंति जे साधवो य अज्जाओ। ते जगपुजं कित्तिं सुहं च लभ्रूण सिझंति॥ 4/196
-इस प्रकार आचरण करने वाले साधु व आर्याएं जगत्पूज्य होकर कीर्ति, सुख को प्राप्त करके सिद्ध होते हैं।
भगवती आराधना के अनुसार कई स्त्रियां मुनियों द्वारा स्तुति योग्य देवताओं के समान पूज्य हुई हैं यथा
सीलवदी ओ सुच्चंति महीयले पत्तपाडि हराओ। सवाण्णुगह समत्थाओ वि य काओवि महलाओ॥ 992 किं पुण गण सहिदाओ इथिओ अस्थि वित्थडजसाओ। णरलोग देवदाओ देवेहिं वि वंदणिज्जाओ। तित्थयर चक्कधर वासुदेव बलदेव गणधरवराणं। जणणीओ महिलाओ सुरणर वरेहिं महियाओ।। 989-990 मोहोदयेण जीवो सव्वो दुस्सील मइलिदो होदि। जो पुण सव्व महिला पुरिसाणं होई सामण्णो। 995
-जो गुण सहित स्त्रियां हैं, जिनका यश लोक में फैला हुआ है, जो मनुष्यलोक में देवताओं के समान हैं और देवों से पूजनीय हैं उनकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है। तीर्थकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव और श्रेष्ठ गणधरों को जन्म देने वाली महिलाएं श्रेष्ठ देवों व उत्तम पुरुषों के द्वारा पूजनीय होती हैं। सब जीव मोह के उदय से कुशील से मलिन होते हैं और वह मोह का उदय स्त्री पुरुषों के समान होता है।
शुभचन्द्र ने ज्ञानार्णव (697 श्लोक 12/57, 58) में कहा है - ननु संति जीव लोके काश्चिच्छ्रम संयमोपेताः। निजवंश तिलक भूता श्रुतसत्य समन्विताः नार्यः सतीत्वेन वृत्तेन विनयेन च विवेकेन स्त्रियः काश्चिद् भूषयति धरातलम्
-अवश्य ही जीव लोक में ऐसी कई नारियां हैं, जो तप व संयम से युक्त हैं, अपने वंश की तिलक समान हैं श्रुत और सत्य से समन्वित हैं