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अनेकान्त/२२
8. छंदसा।'
छंदन
' तथाकार : 9. निमंत्रयः
सनिमंत्रणा
अभ्युत्थान • "10. : उपसंपदा उपसंपद' . . उपसंपदा .
यह स्पष्ट है कि उत्तराध्ययन में इन सामाचारियों का क्रम अन्य ग्रंथों के कम से भिन्न है। उनमें नाम में भी अन्तर है। तथापि वृत्तिकारों के अनुसार अर्थभेद समाधेय है। ऐसा माना जाता है कि यह ग्रन्थ अन्य ग्रन्थों से प्राचीन है। फलतः इनमें भी एक ही क्रम होना चाहिये था। उत्तराध्ययन की परम्परा के ग्रन्थ तत्कालीन भारत के एक ही क्षेत्र में रचे गये हैं। तब यह क्रम भिन्नता कब और कैसे आई? दिगम्बर परम्परा ने भी स्थानांग का ही अनुकरण किया लगता है? इससे क्या यह अनुमान लगाया जाय कि भगवती आदि के भाषा-रूपकारों को उत्तराध्ययन के विषय में जानकारी नहीं थी? इन क्रम-भिन्नताओं के कारण जिनवाणी की परस्पर अविरोधिता की धारणा भी विचारणीय हो जाती है। 10. प्रत्याख्यान के प्रकार .. जैन आचार विधि में भौतिक आहार और उपाधि एवं भावनात्मक कषायादि बंधनों के क्रमशः या पूर्णतः त्याग आध्यात्मिक प्रगति के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। इसका उद्देश्य अनागत दोषों का परिहार व्रतों का निर्दोष पालन एवं भावशुद्धि है। भौतिक प्रत्याख्यान के माध्यम से भावनात्मक शुद्धि होती है। अतः इसका वर्णन अनेक ग्रंथों-भगवती 7.2, स्थानांग 10.10.1, आवश्यक नियुक्ति 6 एवं मूलाचार 639. 40 में किया गया है। इसके दस प्रकार निर्दिष्ट हैं जो निम्न प्रकार हैं
भगवती 7.2 स्थानांग 10.101 मूलाचार 1. अनागत
अनागत
'अनागत __ अतिक्रांत * अतिक्रांत
अतिक्रांत कोटिसहित कोटिसहित कोटिसहित नियंत्रित नियंत्रित । निखण्डित
साकार (सागार) साकार (सापवाद) साकार । 6. अनाकार (अनागार) अनाकार- (निरपवाद) अनाकारः 7. परिमाण कृत परिमाणकृत परिमाणकृत 8. निरवशेष निरवशेष
अपरिशेष 9. संकेत (सूचक) संकेत: "
अध्वामगत (मार्गगत)
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