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________________ अनेकान्त/२१ को प्रोत्साहन मिलता है। चारित्र की सम्यक्ता से तत्व विद्या एवं प्रामाणिकता के प्रति रुचि बढ़ती है। यद्यपि अनुयोगों का क्रम स्थूल से सूक्ष्म की ओर दोनों परंपराओं में है पर नाम क्रम की भिन्नता का स्रोत और समय अन्वेषणीय है। 8. पुद्गल के स्पर्शादि गुणों में क्रम भेद पुद्गल को स्पर्श चतुष्टय से परिभाषित किया जाता है। दिगंबर परंपरा के तत्वार्थ सूत्र आदि में उनका क्रम स्पर्श, रस, गंध एवं वर्ण के रूप में है जिसका तर्कसंगत समर्थन राजवार्तिक आदि ग्रंथों में उपलब्ध है। इसके विपर्यास में, श्वेताम्बर आगमों में उनका क्रम रूप, रस, गंध एवं स्पर्श का है। यहां भी ऐसा प्रतीत होता है कि दिगंबर परंपरा स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाती है और श्वेतांबर परंपरा इसके विपरीत दिशा में जाती है। इस क्रम-व्यत्यय का स्रोत एवं समय भी विचारणीय है। 9. सामाचारी के प्रकार सामाचारी में साधुओं के सामान्य व्यवहारों से संबंधित प्रवृत्तियां निरूपित की जाती है। इसका विवरण एवं प्रकार अनेक दिगंबर और श्वेतांबर ग्रंथों में पाये जाते हैं। मूलाचार में सामाचारी के दो भेद हैं-सामान्य और विशेष तथा आवश्यक नियुक्ति में तीन भेद हैं-(1) ओध (2) दशविध एवं (3) पद विभाग या विशेष । मूलाचार में ओध को ही सामान्य दशविध के रूप में निरूपित किया है। भगवती आराधना में भी दशविध सामाचारी है। सामान्यतः सामाचारी से दशविध सामाचारी ही माना जाता है। विशेष जानकारी तो इसी का विस्तार है। यह दशविध सामाचारी पांच प्रमुख ग्रंथों में दी गई है जो निम्न प्रकार है : स्थानांग 10.102 मूलाचार 4 उत्तराध्ययन 26.1.7 भगवती 25.7 आ. (सामान्य समाचार) इच्छा इच्छाकार आवश्यकी मिथ्या मिथ्याकार नैषेधिकी तथाकार तथाकार आपृच्छना आवश्यकी आक्षिका प्रतिपृच्छना नैषैधिकी निषेधिका आपृच्छा आपृच्छा इच्छाकार 7. प्रतिपृच्छा प्रतिपृच्छा मिथ्याकार - + छंदना 5
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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