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अनेकान्त/२३
... 10. 'अद्धाप्रत्याख्यान::. :: अध्याप्रत्याख्यान ... सहेतुक (उपसर्गादि)
___(कालमानिक) .... . भगवती में मूलगुण प्रत्याख्यान (पंच पाप-विरति) एवं उत्तरगण प्रत्याख्यान की चर्चा, पर उत्तरगुण प्रत्याख्यान के दस भेद बताये हैं। इन प्रकारों से यह स्पष्ट है कि मूलाचार में नवम एवं दशम. प्रत्याख्यान का न केवल क्रम परिवर्तन है, आठवें नाम में भी. (पर अर्थ में नहीं). अंतर है। पर उनके अर्थों में भी अंतर है। महाप्रज्ञ ने बताया है कि मूलाधार का क्रम व अर्थ अधिक स्वाभाविक एवं परंपरागत लगता है। दिगंबर परंपरा में इनका परंपरागत क्रम व्यत्यय कब, कैसे और क्यों हुआ यह समाधेय है। 11. उपासक या श्रावक प्रतिमा के ग्यारह प्रकार
सामान्य गृहस्थों की क्रमिक आध्यात्मिक प्रगति के लिये अनेक ग्रंथों में ग्यारह प्रतिमाओं या चरणों के पालन का उल्लेख है। इन चरणों की धारणा प्राचीन प्रतीत होती है, पर इनका नामोल्लेख सर्वप्रथम समवायांग में पाया जाता है पर भगवती, उत्तराध्ययन आदि में नहीं है। फलतः प्रतिमाओं की अवधारणा का विकास किंचित् उत्तरवर्ती प्रतीत होता है। ये प्रतिमायें सम्यग्दर्शन और अनेक व्रतों पर आधारित हैं। इनकी संख्या ग्यारह है जो स्थानांग 10.45 में भी निर्दिष्ट है। अनेक श्वेतांबर और दिगंबर ग्रंथों में भी इन प्रतिमाओं का उल्लेख है जैसा नीचे दिया गया है : ... समवाओं 11... अन्य ग्रन्थ , जैनेन्द्र सिद्धांत कोष, 1. दर्शन श्रावक , दर्शन श्रावक- '. 'दर्शन ?: कृतव्रतकर्म कृतव्रतकर्म ... ! व्रत " .. कृतसामायिक . . कृतसामायिक सामायिक । 4. प्रोषधोपवास-निरत . . प्रोषधोपवासमिरत प्रोषधोपवास 5... दिवा-ब्रह्मचारी .. रात्रि-भक्त परित्याग संचित-त्याग' । 6: ब्रह्मचारी (पूर्ण) सचित परित्याग - रात्रि भुक्तित्याग 7. सचित्त परित्याग दिया ब्रह्मचारी .. 'ब्रह्मचर्य ... 18: आरंभ परित्यागी : पूर्ण ब्रह्मचारी''. 'आरंभत्यांग 9... प्रेष्यपरित्यागी' ' आरंभ-प्रेषणपरित्याग । परिग्रहत्याग 10. उद्दिष्टभक्त-परित्यागी उद्दिष्ट भक्त वर्जन अनुमतित्याग 4: श्रमणभूत । श्रमणभूत
उद्दिष्ट त्याग