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________________ अनेकान्त/४४ चैन की सांस लेता है, पर यहाँ रहकर आदमी पूरी तरह रुकता नहीं है, वह आगे की यात्रा के लिए सामग्री सजोता-समेटता है। विश्रामगृह तो मात्र रात बिताने के आरामगाह हैं। इस गुणस्थान में आने वाला जीव सकल संयम को रोकने वाली प्रत्याख्यानावरण कषायों का उपशम होने से सकल संयमी तो होता है, किन्तु उसमें उस सयम के साथ-साथ सज्वलन कषायो और नोकषायों का उदय रहने से सयम में मल को उत्पन्न करने वाला प्रमाद भी होता है अतएव इस गुणस्थान को प्रमत्तविरत कहते हैं। अप्रमत्तसंयत-सातवीं कक्षा यानी सूर्योदय। प्रभातकालीन सात बजे के टंकारे। अब व्यक्ति स्वयं को पुन तन्दुरुस्त समझता है। अप्रमत्त वेग से उसके कदम आगे से आगे बढ़ते हैं। वह भारण्ड पक्षी की तरह जागरूक रहता है। अपने व्यक्तित्व को प्रगति के पथ पर आगे से आगे बढाने के लिए उसके कार्य बेमिशाल हो जाते है, उसका कर्तव्य कमाल का बन जाता है। इस दर्जे मे पहुंचने वाले लोगो का दर्जा काफी ऊंचा होता है। वे फिर सही अर्थो मे वी आई पी हो जाते हैं। उन्हें खास शब्दों में वरी इम्पोर्टेन्ट पर्सन' कह सकते हैं। इस दशा में व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली हो जाता है कि उसकी रग-रग में उज्ज्वलता की किरणें फूटने लगती है जैसे सूर्य की किरणों से फूल खिल जाते हैं, वैसे ही उसके सम्पर्क से दुनिया की मुरझायी कलियाँ किलकारियाँ मारने लगती हैं। उसके पास बैठने मात्र से ही व्यक्ति के मन की वीणा संगीत झंकृत करने के लिए मचलने लगती है। यह सोपान वास्तव मे व्यक्तित्व के परिवेश में एक विशेष क्रांति है। सभी गुणस्थानों में अप्रमत्त गुण सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि यही वो गुणस्थान है, जो साधन के उत्थान और पतन का निर्णय करता है। ये गुणस्थान आरोहण तो ठीक वैसे ही है, जैसे राजपथ में हितोपदेश में लिखा रहता है कि 'सावधानी हटी दुर्घटना घटी' जिसका संयम प्रमाद
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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