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________________ अनेकान्त/७ हमारी जीवन शैली का अंग था, वह मात्र अब प्रवचनो एव सम्मेलनो का विषय बन गया है। पहले हम माधु को उमके चारित्र के मापदण्ड से मापते थे, अब आकर्षण, भाषणकौशल, मन्त्र-तन्त्र तथा धन एकत्र करने के सामर्थ्य से हम उन्हे बडा मानने लगे हैं। __ मेरा विनम्र अनुरोध है. समाज के कर्णधारो से कि अप्रैल २००१ मे भगवान् महावीर की २६०० जन्म-जयन्ती के राष्ट्रीय स्तर के आयोजनो के समय महावीर स्मरण के इस पावन अवसर पर एक कार्ययोजना तैयार करे, जिससे समाज का बहुमुखी विकास हो, आपसी मन-मुटाव दूर हो। पहले हम आत्मशान्ति प्राप्त करे. समाज मे सद्भाव एव शान्ति बनाये तब विश्व शान्ति की बात करें तो यह हमारा सार्थक प्रयास होगा। अन्यथा हम पहले भी राष्ट्रीय स्तर पर उत्सव मना चुके है और आगे भी मनाते रहेगे पर स्थिति वही 'ढाक के तीन पात' जैसी रहेगी। हमे कदम-कदम पर यह याद रखने की आवश्कता है कि अन्यायोपात्त धन कभी भी धर्म का साधन नही बन सकता है और न्यायोपार्जित आजीविका का साधन स्वय गृहस्थ का धर्म है। यदि हम सच्चे भगवान् महवीर के अनुयायी है तो हम आज ही उनके द्वारा प्रतिपादित मार्ग पर चलने का सकल्प ले। - जयकुमार जैन सूचना जनवरी २००० से "अनेकान्त'' के सम्पादक का कार्यभार डॉ जयकुमार जैन. २६१/३, पटेलनगर. मुजफ्फरनगर ने सम्हाला हुआ है। प्रकाशनार्थ लेख सीधे सम्पादक के पास भेजें। दूरभाष सम्पर्क ०१३१-६०३७३० है। समीक्षार्थ ग्रन्थ की दो प्रतियाँ भेजना आवश्यक है। एक प्रति वीर सेवा मन्दिर ग्रन्थालय मे शोधार्थियों के लाभार्थ रखी जावेगी। - सुभाष जैन महासचिव-वीर सेवा मन्दिर
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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