SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त / ६ तीर्थकर महावीर ने उस समय स्त्रियों को धार्मिक आराधना के अधिकार की बात कही, जब स्त्रियों और शूद्रो को वेदाध्ययन सर्वथा निषिद्ध था । उन्होने अपने साधु-जीवन मे चन्दना से आहार ग्रहण कर नारियो को धर्माराधना की अधिकारिणी स्वीकार करने का सूत्रपात किया तथा चतुर्विध सघ में आर्यिका के रूप में नारियों को प्रतिष्ठित स्थान प्रदान किया । उन्होने घोषणा की कि स्त्रिया भी धर्माराधना द्वारा स्त्रीलिंग छेदकर मुक्ति को प्राप्त कर सकती है। भगवान् महादीर के अनुसार हठाग्रह के कारण हम सत्य को नहीं पहचान पाते हैं । हम जो देख और जान पाते हैं, उतना कह नही पाते है । वस्तु को देखने-जानने के अनेक पहलू हैं। कोई भी एक समय में एक पहलू भी ठीक से देख या जान नही पाता है, फिर कहने की तो बात ही अलग है। अहंकार के कारण हम अपनी बात को सही तथा दूसरे की बात को गलत कहते है । यह एकान्त दृष्टिकोण समीचीन नहीं है हमे अपना चिन्तन अनेकान्तमय बनाना चाहिए। इससे दूसरो के दृष्टिकोण को सर्वथा गलत माने की अवधारणा दूर हो सकेगी । 1 आज महावीर का अनुयायी जैन समाज विविध उत्सवों मे उनके सिद्धान्तों के प्रचार-प्रसार की डुगडुगी बजाने मे लगा है। हमे आज आवश्यकता है आत्म निरीक्षण की कि क्यों हमारे समाज के ही कतिपय व्यक्ति घी में चरबी मिलाने मे पकडे जाते हैं? क्यों हम अहिंसा का मजाक उडाते हुए कत्लखानों के प्रेरक देखे जाते है? क्यो हमारे साधुओ मे भी अतिचार नहीं, अनाचार ने भी प्रवेश कर लिया है? क्यों पानी छानकर पीने वाले हम जैनी गरीबो के शोषण मे प्रवृत्त हैं? मेरी दृष्टि में इन प्रश्नो का सहज कारण यह है कि हमारी उत्सव प्रियता बढी है, हमने ज्ञान के कल्पवृक्ष विद्वानो को मुरझाने दिया है, सत्साहित्य के प्रति हमारी रुचि कम हुई है तथा यद्वा तद्वा आकर्षक नामों वाला साहित्य हम छपाकर नई पीढी को गुमराह कर रहे है । पहले हमारा प्रत्येक मन्दिर वचनिका के माध्यम से स्वाध्याय - भवन भी था। अब यह समन्वय समाप्तप्राय है । हमारे चौका में फास्ट-फूड ने प्रवेश कर लिया है तथा जो शाकाहार
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy