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________________ आदिपुराण में लोक-संस्कृति -राजमल जैन आदिपुराण मूलरूप से आदिनाथ और चक्रवर्ती भरत के चरित और उनके भव-भवांतर से संबंधित है। प्रसंगवश उसमें अन्य भव्य जीवों और निमित्तज्ञानी मुनियों एवं काव्योचित प्रकृतिवर्णन आदि की बहुलता है। इस कारण से उसमें लोक-संस्कृति ढूंढ पाना महासागर में से मोती निकालने के समान है। उसके दोनों भागों के लगभग बारह सौ पृष्ठों के अवलोकन के बाद मैंने इस विषय पर कुछ सामग्री एकत्रित की है। सभी बिदुओं से संबंधित श्लोक देना भी संभव नहीं हो सकता है। फिर भी कुछ दिए गए हैं। आठवीं सदी के इस महाकाव्य से संबंधित ऐतिहासिक परिस्थिति का संक्षेप म उल्लेख करना भी आवश्यक लगा, जिसे इस लेख के अंत में दिया गया है। ___विद्वान् - ऐसा लगता है कि जिनसेनाचार्य ने विद्वानों को भी कुछ सुनाई है। कहीं उन्हें विद्वत् कहा है और कहीं बुधजन या कोविद । उनकी कुछ उक्तियाँ इस प्रकार हैं - 1. विद्वान् लोग हेतु, हेत्वाभास, व्याकरण और छल के पंडित या कोविद हात है। आज की भाषा में तिकड़मी या एक दूसरे की टाँग खींचने वाले होते है। 7-641 2. विद्वानों को लोभ नहीं करना चाहिए। १. जो बुधजन अभ्युदय प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें पहले पुण्य संचय करना चाहिए। 15-22 ___ 4. आचार्य ने विद्वानों को महत्वपूर्ण पद प्राप्त कराने की बात भी कही है। उन्होंने कहा है कि राजा को विद्वानों के आश्रय में रहना चाहिए। यह उक्ति गुणभद्राचार्य की है। विद्वान् ‘एडवाइज़र' हो सकते हैं। 43 बाल काले करना - भरत की सेना के कुछ सैनिक बालों में खिजाब लगाकर, आँखों में काजल लगाकर वृद्ध होते हुए भी तरुण के समान आचरण करते हुए किसी कुट्टिनी के पीछे भाग रहे थे। 29-120
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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