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________________ 53/3 अनेकान्त/34 सम्म दंसण णाणं ऐसो लहदि ति णवरि ववदेसं । सव्वणय पक्ख रहिदो भणिदो सो समय सारो।। जो समस्त नय-पक्ष से रहित कहा गया है वह समयसार है, यह समयसार ही केवल सम्यक्दर्शन ज्ञान इस नाम को पाता है। ___ याद रहे जिस युग में तारण स्वामी (1448-1515) प्रगट हुए वह सन्तों के उपदेशों का युग था। मुस्लिम सूफी सन्तों के अलावा सूर, तुलसी, मीरा, नानक, कबीर, रैदास आदि हिन्दू सन्तों का युग था। जैन सन्तों में मुख्य थे तारण स्वामी। जैनेतर परम्परा के सन्तों को ईश्वर ही सब कुछ है-चाहे साकार हो, निराकार हो किन्तु जैन सन्त का काम बड़ा ही कठिन था। वह अपने 'स्व' पर ही केन्द्रित था। प्रभु मिलन के अनुभव को शायद कुछ आसानी से कहा जा सके, जैसे - 1. कबीर तेज अनंत मानो उगी सूरज सेणि पति संग जागी सुदरी कौतिग दीठा तेणि। 2. पिंजर प्रेम प्रकासिया जाग्या जोग अनंत संसा खूटा सुख भया मिल्या पियारा कंत 3. पिंजर प्रेम प्रकासिया अंतरि भया उजास मुखकस्तूरी महकही वाणी फूटी बास। किन्तु 'स्व' मिलन के अनुभव को वर्णन करना अत्यन्त दुष्कर काम है। तारण स्वामी ही एक मात्र ऐसे जैन सन्त हैं जिन्होंने संगीत व भजनों के द्वारा आत्मा के परमात्मा बनने की प्रक्रिया में होने वाले अपने अनुभव वर्णन किए हैं। ममल पाहुड़ के पृ. 751-771 (138) उवन अर्क सोलही गाथा (139) जै जै मेल समय गाथा (140) दि सि अंग फूल गाथा (141) समय उवन गाथा (142) उवन पिय रमन गाथा आदि, गाथा-भजनों के द्वारा सम्यक्-प्राप्ति के आनन्द अनुभवों का विस्तार से वर्णन किया है। उन्हीं का सार छद्मस्थवाणी में सूत्ररूप में लिखा गया है। दोनों ग्रंथों की भाषा देशी बुंदेलखण्डी है, जिसको जयसागर जी की टीका के सहारे ही समझा जा सकता है। इस सब अनुभव-वर्णन का आस्वादन तो आप पढ़कर ही कर सकेंगे। कुछ आत्मानुभव का रस लीजिए। अविरत सम्यक्त्वी कहता है - चौथे जे उत्पन्न जैसे ऐ से होई
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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