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________________ समय-शाह -जस्टिस एम. एल. जैन समय-सार का नाम तो करीब-करीब सबने सुन रखा है। समय, स्वसमय परसमय यह भी जानते हैं लोग। समय अनेकार्थी है। कोई समय का अर्थ करते हैं आत्मा। कोई समय से मतलब जैन-दर्शन भी लेते हैं। समयसार की स्तुति और पूजा भी करते हैं भक्तजन। परन्तु समय एक शहंशाह है, एक सम्राट है। धन्य है समय, इसकी उत्कृष्टता की जितनी प्रशंसा की जाय कम है। समय की इस अनुभूति को तारण-स्वामी (1448-1515) ने अपनी सूत्र-पुस्तक 'छद्मस्थ वाणी' में बड़े ही दिलचस्प तरीके से वर्णित किया है। वे बड़े ही सरल जैन ऋषि हो गए हैं। उनकी यह पुस्तक ब्रह्मचारी जयसागर जी ने सम्पादित की है। इसमें सूत्र, संस्कृतटीका, संस्कृतकाव्य, हिन्दी-गद्य-पद्य काव्य-अनुवाद के साथ विशेषार्थ देकर प्रकाशित किए गए हैं। मूल सूत्रों के अलावा सब कुछ ब्र. जयसागर जी की कृतियाँ हैं ऐसा जाहिर होता है। जयसागर जी तो तारण-स्वामी के गणधर-समान हैं। बारहवें गुणस्थान तक श्रावक मुनि सब छद्मस्थ ही कहलाते हैं। जिनवर तारण-स्वामी भी छद्मस्थ थे,एक देश-जिन थे, इसलिए उनकी वाणी छद्मस्थ वाणी है। इस पुस्तक में इस संत के चौथे गुण-स्थान के अपने अनुभवों का संकलन है, जिन्हें उनके शिष्यों ने लेखबद्ध किया है। इन सूत्रों में जो लिखा है वह एक बाल के अग्रभाग के करोड़ों भाग करने पर एक भाग के बराबर ही है-अंदाज लगायें उस समग्र अद्भुत अनुभव का। कल्पनातीत है वह। तारण-स्वामी के दर्शन-साहित्य की भाषा संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश व देशी भाषा का अजीब मेल है जिससे जाहिर होता है कि 15वीं सदी के उत्तर काल के व्यवहार में शुद्ध संस्कृत की भूमिका घट चुकी थी, प्राकृत अपभ्रंश की भूमिका भी घट रही थी। दर्शन-साहित्य में देशी भाषा का प्रयोग बढ़ गया था और बुंदेलखण्ड में एक गंगा-जमुनी भाषा का उदय हो चुका था। इस भाषा के व्याकरण के कोई नियम निश्चित नहीं हुए थे। न ही उन नियमों को ढूंढने की, उसके
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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