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________________ माया हास्य 53/3 अनेकान्त/24 अनुभूति राग और अप्रीत्यात्मक अनुभूति द्वेष कहलाती है। सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक एरिक बर्ने (Eric Beme) और सल्ले (Sulley) अनुभूतियों को सुखात्मक या दुःखात्मक मानते हैं। जैनदर्शन में राग-द्वेष को कषाय रूप कहा गया है तथा कषायें क्रोध, मान, माया एवं लोभ चार प्रकार की कहीं गई हैं। इन चार कषायों के अतिरिक्त हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद तथा नपुंसकवेद को नोकषाय या ईषत्कषाय माना गया है। इन 13 कषायों की तुलना मनःसंवेगों से इस प्रकार की जा सकती है - कषाय मनःसंवेग 1. क्रोध क्रोध Anger 2. मान उत्कर्ष, अपकर्ष Positive And Negative Feeling 3. माया Et Illusion 4. लोभ स्वामित्व Feeling of Ownership उल्लास Feeling of Laughing 6. रति कामुकता, वात्सल्य Lust Feeling And Tender Emotion 7. अरति करुणा Feeling of Appealing 8. शोक दुःख Feeling of Appealing 9. भय भय Fear जुगुप्सा घृणा Disgust 11. स्त्रीवेद 12. पुंवेद कामुकता Lust Feeling 13. नपुंसकवेद साधना, भक्ति या वैराग्य को बढ़ाने वाला सबसे बड़ा साधन प्रतिपक्ष की भावना है। यदि अशुभ का त्यागना है तो शुभ का संकल्प करना आवश्यक है, यदि पापकर्म को छोड़ना है तो पुण्यकर्म का अवलम्बन आवश्यक है। महर्षि पतञ्जलि का स्पष्ट कथन है-'वितर्कबाधने प्रतिपक्षभावनम्" अर्थात् यदि एक पक्ष को तोड़ना है तो प्रतिपक्ष की भावना पैदा करो। आचार्य मानतुङ्ग ने भक्तामर स्तोत्र में की गई जिनेन्द्र देव की भक्ति से इन मनःसंवेगों या कषाय-भावों को तोड़ने -
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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