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________________ 53/3 अनेकान्त/22 __मूल-प्रवृत्ति मनःसंवेग 1. पलायन Escape भय Fear 2. संघर्ष Combat, Pognacity क्रोध Anger 3. FUFITAT Curiosity कौतूहल Wonder 4. आहारान्वेषण Food-Seeking भूख Appetite 5. पितीय Parental वात्सल्य Tender 6. जाति-बिरादरी Society सामूहिकता Loneliless Repulsion जुगुप्सा Disgust 8. काम Sex, Mating कामुकता Lust 9. स्वाग्रह Self Assertion उत्कर्ष Positive Self Feelng '10. आत्मदीनता Submission अपकर्ष Nagative Self Feeling 11. उपार्जन Acquisition Filtre Feeling of Ownership 12. रचना Construction सृजन Feeling of Construction 13. याचना Appeal दुःख Feeling of Appealing 14. हास्य Laughter उल्लास Feeling of Laughing काव्य या नाट्य के स्थायीभावों के साथ इन मूल प्रवृत्तियों (Instincts) और मनःसंवेगों (Emotions) की अत्यन्त समानता है। मैक्डानल ने मूल प्रवृत्तियों का स्वरूप स्पष्ट करते हुए लिखा है कि "वह पितृगत या जन्मजात मानसिक-शारीरिक वृत्ति हैं जो इसके धारणकर्ता को एक विशिष्ट विषय का प्रत्यक्षीकरण करने, उसकी ओर अवधान केन्द्रित करने तथा एक संवेगात्मक उत्तेजना की अनुभूति करने से, उस विषय के विशेष गुणयुक्त की संबोधना से उत्पन्न हुई हो और उसी के अनुरूप विशिष्ट दिशा में कार्य करने अथवा उस कार्यसम्बन्धी प्रेरणा का अनुभव करती हो।' मनौवैज्ञानिकों की अवधारणा है कि मुख्य प्रवृत्ति अन्य प्रवृत्तियों को गौण बना देती हैं, हालाँकि सभी प्रवृत्तियों मानव में हमेशा विद्यमान रहती हैं। स्थायी भाव भी काव्यशास्त्रियों की दृष्टि में सदैव स्थित रहने वाले मनोभाव ही हैं। स्थायीभाव अन्य भावों-व्यभिचारीभावों को आत्मरूप बना लेते हैं। स्थायीभाव का स्वरूप स्पष्ट करते हुए दशरूपककार धनञ्जय ने कहा है -
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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