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________________ अनेकान्त/17 है। इस संघ के साधु डनलप के गद्दों पर टाट लपेटकर उन्हें सोते समय काम में लाते हैं। अरति, याचना, अलाभ, सत्कार-पुरस्कार आदि परीषहों का सामना करने के अवसर भी पहले से काफी कम होते जा रहे हैं। अधिक से अधिक सुविधायें जुटाने की प्रवृत्ति गृहस्थों में तो हमेशा से ही रही है, अब हमारे साधुवृन्द भी सुविधाभोगी होते जा रहे हैं। सुविधाओं में रहने और जीने की आदत से ही शिथिलाचार का जन्म होता है। जिस प्रकार किसी जैन के घर का कोई बच्चा प्रतिदिन अनछना पानी पीता हो अथवा कभी-कभार रात्रि भोजन कर लेता हो तो एक बार को उस ओर से आँख मूंदी जा सकती है किन्तु उसके द्वारा मद्यपान अथवा अण्डे-आमलेट या फास्टफूड का सेवन बर्दाश्त करने योग्य नहीं है; उसी प्रकार अन्य सभी परीषहों को सहन करने से बचाव के साधु के प्रयासों को एक बार अनदेखा किया जा सकता है किन्तु नग्नपरीषहजय एवं स्त्री परीषहजय में शिथिलता असह्य है। इन दोनों परीषहों का जीतना तो साधु के लिये अनिवार्य है। इसमें कोई छूट उन्हें नहीं दी जा सकती। अखण्ड ब्रह्मचर्य की साधना में ही साधुता का गौरव है। यदि साधु-संघों में भी स्त्रीजनित वासना की विष-बेल लहलहाने लगे तथा गर्भपात जैसी घटनाएं जन-जन की चर्चा का विषय बन जाएं तो इसे पतन की पराकाष्ठा ही माना जायेगा। पूज्य आचार्यों का यह दायित्व है कि वे अपने संघस्थ या संघबाह्य (स्वतन्त्र विहार करने वाले) शिष्यों पर अनुशासन रखें। शीलजनित दोष यदि किसी शिष्य से बन जाये तो उसे दण्डित करें और उसे उचित किन्तु कठोर प्रायश्चित को स्वीकार करने के लिये बाध्य करें। दुःख है कि आज ऐसा नहीं हो रहा है। शील-दोष को भी उपगूहन अंग के नाम पर दृष्टि से ओझल और उपेक्षित करने की कोशिश हो रही है। अतिचार का उपगूहन तो समझ में आता है किन्तु अनाचार या दुराचार की उपेक्षा न केवल समझ से परे है, बल्कि निहायत अनुचित भी है। दुराचार की उपेक्षा से दुराचार बढ़ता रहता है। शीलभंग के दोषियों को दण्डित न किया जाना अपराध की श्रेणी में गणनीय है। यदि हमारे आचार्यगण दण्ड नहीं देते या दे सकते हैं तो समाज को इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करनी चाहिए। पूज्य आचार्य श्री विद्यानन्दजी
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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