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________________ अनेकान्त / 14 का पालन तो करेंगे ही, जल को प्रदूषित होने से भी बचा लेंगे। अमर्यादित खनिज कोयला, मिट्टी का तेल, डीज़ल, पेट्रोल आदि के प्रयोग से सम्पूर्ण वायुमण्डल प्रदूषित हो रहा है तथा बस, ट्रेन, मिल, लाउडस्वीकर आदि की तेज ध्वनि से आकाश में ध्वनिप्रदूषण बढ़ता जा रहा है। रासायनिक एवं जैविक खादों के प्रयोग ने वनस्पतियों को भी प्रदूषण से मुक्त नहीं रहने दिया है । इन सबसे बचने का उपाय अहिंसाणुव्रत का परिपालन करना और अनर्थदण्डों का परित्याग है । हमें चाहिए कि हम आवश्यकताएं कम करें तथा आवश्यकता से अधिक अग्नि न जलावें । धूम्रपान की प्रवृत्ति को रोकें । ध्वनि एवं वाणी की निष्प्रयोजन प्रवृत्ति न होने दें तथा रासायनिक खादों की अपेक्षा प्राकृतिक खादों का प्रयोग करें। वनों को व्यर्थ में न काटें। फर्नीचर आदि की आवश्यकतायें सीमित करें। वन हमारे लिए आक्सीजन का भण्डार हैं। अतः इनका संरक्षण करें । 1 श्रावकाचार परिपालन और तनावमुक्ति आज आबालवृद्ध सभी का जीवन तनावग्रस्त है। बच्चों में हो, बूढ़ों में या फिर युवक-युवतियों में सर्वत्र तनाव का वातावरण है। कोई तन से दुःखी है तो कोई धन से या फिर मन से। किसी का असाध्य बीमारी है तो किसी को चिन्ता में नींद नहीं आती है तो कोई 'और चाहिए, और चाहिए' पास 10 पीढ़ी तक की उपभोग सामग्री है तो वह ग्यारहवीं पीढ़ी की चिन्ता से तनावग्रस्त है । यदि हम श्रावकाचार में वर्णित आचारों का पालन करें विशेषतया परिग्रहपरिमाण का नियम ले लें तो हमें तानव से मुक्ति मिल सकती है। तनाव से मुक्ति के लिए हमें यही विचार निरन्तर करना होगा कि 'इकट्ठे कर लो चाहे जितने हीरे मोती । मगर याद रखना कफन में जेब नहीं होती ।।' इसे स्मरण करते हुए श्रावकाचार का पालन करें और तनाव को दूर भगायें । - - मरण की सार्थकता सल्लेखना में जैन परम्परा में मरण की सार्थकता और वीतरागता की कसौटी सल्लेखना मानी गई है। अच्छी तरह से काय और कषायों के कृश करने का नाम सल्लेखना है। मुनि की तरह श्रावक भी -
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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