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अनेकान्त/11
रात्रिभोजनत्याग, पञ्चक्षीरफलत्याग, पञ्चपमेष्ठी स्तुति, जीवदया और जलगालन की आठ मूलगुण माना गया है। यतः मांसाहारियों में दया, मद्यपायियों में सत्यता तथा मधु एवं उदुम्बरफल सेवियों में आनृशंसता (भद्रता) नहीं होती है, अतः इनके त्यागरूप मूलगुणों को श्रावक की आचार संहिता में आवश्यक माना गया है।
लोक में भी कहावत है 'जैसा खाये अन्न वैसा होवे मन, जैसा पीबे पानी, वैसी बोले बानी।' इसी कारण श्रावक की आचारसंहिता में भक्ष्याभक्ष्य पर विचार किया गया है। मद्यपान से स्नायुदौर्बल्य, मस्तिष्क का कम्पन, कामाग्नि का उद्दीपन तथा कलह का वर्धन होता है। मांसाहार से व्यक्ति अस्वस्थ एवं रोगी हो जाता है। मधु को प्राप्त करने की प्रक्रिया अत्यन्त हिंसक है, अतः इससे भद्रपरिणामों का अभाव हो जाता है। पांच उदुम्बर फलों में बड़, पीपल, गूलक, मधूक एवं मंजीर का समावेश है। इन फलों में असंख्यात त्रस जीवराशि विद्यमान रहती है, अतः ये पर्यायान्तर से मांसपिण्ड ही कहे ये हैं। इनके सेवन से भी भद्रता नष्ट होती है। अतः कहा भी गया है।
'मांसाशिषु दया नास्ति, न सत्यं मद्यपायिषु।
आनृशस्यं न मत्र्येषु, मधूदुम्बरसेविषु।। उपर्युक्त विवेख्न से सुस्पष्ट है कि शरीर की स्वस्थता एवं मन की निर्मलता के लिए श्रावक की आचार संहिता में निर्दिष्ट मूलगुणों का पालन आवश्यक है। इसी में समाज की स्वस्थता है।
पांच अणुव्रत : आज की समाज की अनिवार्यता - आज हिंसा का ताण्डव सर्वतोमुखी बनता जा रहा है। मांस, मछली एवं अण्डों की खुलेआम बिक्री ने मानव को ऐसा निर्मम बना दिया है कि वह आदमी को गाजर-मूली की तरह काट रहा है। नित्य नये बूचड़खाने खुलते जा रहे हैं। कहा जाता है कि मानव ने ऐसे विध्वंसक शस्त्रास्त्रों का निर्माण कर लिया है कि पृथ्वी का 21 बार विनाश किया जा सकता है। हिंसा का ही अगला कदम झूठ है। झूठ अब हमारी संस्कृति में समा गया है। झूठ बोलना अब बुरा नहीं, अपितु लोग बोलने का
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5. द्रष्टव्य – समीचीन धर्मशास्त्र, प्रस्तावना पृ० 59 (जु० कि० मुख्तार)