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| वर्ष ५२ किरण ३
अनेकान्त वीर सेवा मंदिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ जुलाई-सितम्बर वी.नि.स. २५२४ वि.सं. २०५४
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ऐसा योगी क्यों न अभय पद पावै !
ऐसा योगी क्यों न अभय पद पावै
सो फेर न भव में आवै।। ऐसा० ।। संशय विभ्रम मोहविवर्जित, स्वपर स्वरूप लखावै।। लख परमातम चेतन को पुनि, कर्मकलंक मिटावै।। ऐसा० ।। 1 ।। भव तन भोग विरक्त होय तन, नग्न सुभेष बनावे। मोह विकार निवार निजातम, अनुभव में चित्त लावै।। ऐसा० ।। 2 ।। त्रस थावर वध त्याग सदा परमाद दशा छिटकावै। रागादिक वश झूठ न भावे, तृणहु न अदत्त गहावै।। ऐसा० ।। 3 ।। बाहिर नारि त्याग अर, अन्तर चिद्ब्रह्म सुलीन रहावै। परम अकिंचन धर्मसार सों द्विविध प्रसंग बहावै।। ऐसा० ।। 4 ।। पंच समिति त्रयगुप्ति पाल व्यवहार चरन मग धावै। विचित्र सकल कषाय रहित है शुद्धातम थिर धावै।। ऐसा०।।5।। कुंकुम पंक दास रिपु तृणमानि व्याल मराल समभावै। आरत रौद्र कुध्यान विदारे, धर्मशुक्ल को ध्यावै।। ऐसा०।। 6 ।। जाकै सुख समाज की महिमा कहत इन्द्र अकुलावै।
'दौलत' तास पद होय दास सो अविचल ऋद्धि लहावै।। ऐसा० ।।7।। 'अनेकान्त' आजीवन सदस्यता शुल्क : 101.00 रु. वार्षिक मूल्य : 6 रु., इस अंक का मूल्य : 1 रुपया 50 पैसे यह अंक स्वाध्यायशालाओं एवं मंदिरों की माँग पर निःशुल्क
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