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________________ अनेकान्त/३८ समवसरण रथ विहार के माध्यम से धर्म प्रभावना हो रही है। साथ ही भारी धन संग्रह का उपक्रम भी । उसके समापन हेतु फिर एक वृहद् आयोजन की रूपरेखा वनेगी और पिच्छि- कमण्डलु की ओट में मूक होकर समाज अपने धन का सदुपयोग होते देखकर आत्ममुग्ध होगी । ' ऐसा हो चुका है जब श्री महावीर जी में भूगर्भ से प्राप्त जिनबिम्ब का सहस्राब्दि महोत्सव मनाया गया । चतुर्थकाल की आस्थागत मान्यता को धता बतलाते हुए पुरातत्त्वविदों द्वारा एक हजार वर्ष जितनी प्राचीनता पर मुहर लगवायी गई और भारी तामझाम के साथ आयोजन की रूपरेखा बनी । लाखों यात्रियों का अनुमान कर तम्बुओं की व्यवस्था की गई। वी. आई. पी. कोटे में आवासीय कमरों को आरक्षित किया गया। फिर भी आयोजन के समय अधिकांश तम्बू खाली ही पड़े रहे । भारी नियमित अंशदाताओं की उपेक्षा करते हुए अल्पराशि दातारों को अभिषेक का अवसर दिया गया। आश्चर्य की बात है कि श्री महावीर जी जैसा क्षेत्र जो स्वयं में इतना सातिशयी है कि वहाँ बिना याचना के ही धन वर्षा होती रहती है । हमेशा मेले जैसा माहौल रहता है फिर सहस्राब्दि के बहाने I राशि नियतकर अभिषेक की अनुमति की योजना क्यों कर निर्मित्त हुई ? सुना तो यह भी गया है कि मानस्तम्भ स्थित जिनबिम्ब के प्रक्षाल के लिये भी राशि निर्धारित करने की योजना थी उसे एक सक्षम सामाजिक कार्यकर्त्ता के प्रबल विरोध पर स्थगित करना पड़ा। राशियों के आधार से अभिषेक की अनुमति देना किस आगम के अनुसार है? इसकी खोज होनी चाहिये। जैन समाज श्री महावीर जी के प्रति हमेशा उदार रहा है वहाँ का कोई भी कार्य धनाभाव के कारण कभी नहीं रुका। आयोजन की जो कमेटी कभी दान की याचना नहीं करती थी इस अवसर पर उसे अभिषेक के कलश बेचने की याचना करनी पड़ी। हाँ, एक उपलब्धि तो यह हुई कि इतने बड़े आयोजन और वैभव की चकाचौंध से प्रभावित होकर वहाँ के कर्मचारियों ने वेतनवृद्धि के लिए हड़ताल कर दी और -कमेटी को वेतनवृद्धि करनी पड़ी। फलस्वरूप अब एक बड़ी राशि हमेशा देनी पड़ेगी। दूसरी गौरवपूर्ण उपलब्धि यह हुई कि पूर्व में किन्हीं व्यक्ति
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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