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________________ अनेकान्त / ३२ किये हैं । चक्षु, अचक्षु और अवधि दर्शन ये तीन विभावदर्शनोपयोग के भेद हैं। इस प्रकार दर्शनोपयोग के चार भेद हुए । 5. स्वभाव-विभावपर्याय-: पर्याय के दो भेद हैं- स्वभाव पर्याय और विभाव पर्याय । कर्मों की उपाधि से रहित जो पर्याय है, वह स्वभाव पर्याय है । तात्पर्यवृत्तिकार ने इसके कारण शुद्ध पर्याय और कार्यशुद्ध पर्याय ये दो भेद बताये हैं। विभाव-पर्याय के मूलतः चार भेद हैं- नर, नारक, तिर्यंच और देव । पुनः इनके क्रमशः दो, सात, चौदह और चार भेद कहे गये हैं । 6. कारण कार्य परमाणु-: परमाणु का लक्षण कहते हुए कुन्दकुन्द ने कहा है कि जो स्वयं ही आदि, मध्य और अन्त है, इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य नहीं है तथा अविभागी है, वह परमाणु जानो। उसके कारण और कार्य परमाणु रूप दो प्रकार हैं। जो परमाणु पृथ्वी, जल, तेज और वायु इन चार धातुओं का हेतु है, वह कारण परमाणु है । जो स्कन्धों के अवसान से उत्पन्न होता है, वह कार्य परमाणु है। यहाँ परमाणु के स्वभावगुण और विभावगुण, स्वभावपर्याय और विभावपर्याय तथा निश्चय और व्यवहार नय से पुद्गल द्रव्यत्व कहे गये हैं । 7. हेय और उपादेय-: नियमसार में कुन्दकुन्द ने सम्यग्ज्ञान के लिए " सण्णाणं” शब्द का प्रयोग किया है। उन्होंने संशय, विमोह और विभ्रम रहित तथा हेय और उपादेय तत्त्वों के ज्ञान को सम्यग्ज्ञान बताया है । वे कहते हैं कि जीव के स्वभाव स्थान, मानापमानभाव स्थान, हर्षभाव स्थान अहर्षभाव स्थान, स्थितिबन्ध स्थान, प्रकृतिबन्ध स्थान, औदयिकभाव स्थान, उपशमस्वभाव स्थान, चतुर्गति भ्रमण, जन्म, जरा, मरण, रोग, शोक, कुल, योनि, जीवस्थान, मार्गणास्थान, वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श, स्त्री, पुरुष, नपुंकादि पर्यायें, संस्थान और संहनन नहीं है । व्यवहारनय की दृष्टि से उक्त सभी भाव जीव के माने गये हैं, किन्तु यथार्थ में ये सब परद्रव्य हैं, इसलिए हेय । त्याज्य कहे गये हैं । निश्चय नय से जीवात्मा निर्दण्ड, निर्द्वन्द, निर्मम, निष्कल, निरालम्ब, नीराग, निर्मूढ़, निर्दोष, निर्भय, निर्ग्रन्थ, निःशल्य, समस्त दोष रहित, निष्काम, निष्क्रोध, निर्मान, निर्मद, रूप-रस गंधरहित, अव्यक्त, चेतना गुणवाला, अशब्द, किसी लिंग द्वारा अग्राह्य और किसी भी आकार द्वारा अनिर्दिश्य होता है। ऐसे शुद्ध जीव या आत्मतत्त्व को उपादेय कहा गया है। उक्त हेय
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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