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नियमसार का वैशिष्ट्य
- डॉ० ऋषभचन्द्र जैन 'फौजदार '
कुन्दकुन्द के नियमसार की कतिपय मौलिक विशेषताओं को निम्नांकित रूप में देखा जा सकता है-
1. श्रुत-: कुन्दकुन्द ने स्वयं नियमसार को “श्रुत" नाम देकर इसे केवलियों और श्रुतकेवलियों द्वारा उपदेशित कहा है। संस्कृत टीकाकार पद्मप्रभमलधारिदेव ने इसे “परमागम, परमेश्वर शास्त्र और “ भागवत शास्त्र” कहा है तथा इसके अध्ययन का फल शाश्वत सुख (निर्वाण ) बताया है। 2. नियम -: “णियमेण य जं कज्जं तं नियमं णाणदंसणचरितं ।” (गा. 3) अर्थात् नियम से करने योग्य कार्य नियम है, वह दर्शन, ज्ञान वह, दर्शन और चारित्र है। यहां नियम को मोक्ष का उपाय या मोक्षमार्ग और उसका फल निर्वाण बताया गया है। जैनागमों तथा संस्कृत के पारम्परिक ग्रन्थ में अन्यत्र कहीं भी इस अर्थ में “नियम" शब्द का प्रयोग उपलब्ध नहीं है। इससे स्पष्ट है कि आचार्य कुन्दकुन्द का यह विशिष्ट प्रयोग है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप मोक्षमार्ग व्यवहारनय से नियम कहा गया है। शुभाशुभ रूप वचन तथा राग आदि भावों को निवारण करके आत्मा का ध्यान करना, नियम से नियम है अर्थात् निश्चय से नियम है। 3. तत्त्वार्थ -: नियमसार में विविध गुणों और पर्यायों से संयुक्त जीव, पुद्गलकाय, धर्म, अधर्म, आकाश ओर काल इन छह द्रव्यों को तत्त्वार्थ कहा गया है । यहाँ तत्त्वार्थ या द्रव्य को परिभाषित नहीं किया गया है। आगे " जीवादि दव्वाणं” तथा “एदे छद्दव्वाणि” शब्दों का प्रयोग अवश्य हुआ है। छह द्रव्यों में से काल को छोड़कर शेष पाँच द्रव्य कायवान् तथा बहुप्रदेशी होने