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________________ अनेकान्त/२६ योगदान भुलाया नहीं जा सकता। इन भट्टारकों में बड़े विद्वान, प्रभावनाकारी, लेखक आदि हुए हैं। जिनके नाम सहस्रों की संख्या में प्राप्त हैं। समय के साथ ही मुस्लिम शासन के बाद से भट्टारकों की गद्दियाँ समाप्त होने लगी थीं। आज भारत में केवल 6-7 गद्दियाँ ही शेष हैं। आ० शान्तिसागर जी महाराज ने पूर्णरूप से आगमोक्त मुनिरूप को स्वीकार कर विशेष रूप से श्रमण परंपरा को चालू किया है। अब समय की आवश्यकता है कि भट्टारक वर्ग मूलसंघ की प्रभावना हेतु उस समय की आवश्यकता रूप धारण किए अयोग्य वेष का परित्याग कर जनता को शुद्ध मार्गदर्शन करें। पिच्छी को देखकर ही सामान्य जनता भेष को स्वीकार करती हैं। पिच्छिका धारण करने का अधिकार उपरोक्त तीन-मुनि, आर्यिका, क्षुल्लक को ही है। अतः पिच्छिका के उस अधिकार को स्वयं न लें। अन्य भी आर्षमार्ग के विरुद्ध जो क्रियाकलाप हैं वे भी त्याज्य हैं। बड़े हर्ष की बात है कि कुछ भट्टारकों ने सवारी का त्याग किया है। समय की मांग है कि इस आर्षमार्ग की रक्षा हेतु भट्टारकीय स्थिति के स्थान पर आर्षमार्ग मूलसंघ की प्रभावना हेतु अविलम्ब कदम उठाया जाये। भट्टारक वर्ग का यह कदम अति प्रशंसनीय होगा। वे जिस रूप को भी (मुनि-क्षुल्लक) चाहे अंगीकार करे। चाहे ब्रह्मचारी या गुरुकुल आचार्य के रूप को स्वीकारें-प्रशस्त होगा। विशेष के लिए साधु वर्ग से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। उनका स्वागत ही होगा। ____ आर्षमार्ग की मूल रूप में सुरक्षा सभी के लिए करणीय है। इस समय स्थिति अनुकूल है। यथोक्त संघ चर्या में बाधा नहीं है। आज भारत में लगभग 500 पिच्छिकाधारी दर्शनीय वेष में विचरण कर रहे हैं। भट्टारकों का हमारे हृदय में सम्मान है और वे यदि आर्षमार्ग के मूल स्वरूप को सहयोग प्रदान करेंगे तो जन-जन के बधाई के पात्र होंगे। उनकी विशेष प्रतीति जैन समाज करेगा। ठीक भी है वेश सम्बन्धी भ्रमात्मक स्थिति के त्याग से ही प्रेम, संगठन, आर्षमार्ग का यथोक्त रूप प्रकट होंगे और वह हर्ष का विषय होगा। - मैनपुरी
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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