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________________ अनेकान्त/२४ उसका ऐसा कहना युक्तिसंगत नहीं लगता है। महाभाष्य के गन्धहस्ति नामकरण का कारण क्या है? मान लिया जाय कि आचार्य समन्तभद्र ने तत्त्वार्थसूत्र पर महाभाष्य लिखा था, किन्तु यहाँ जिज्ञासा यह है कि उसका नाम गन्धहस्ति कैसे पड़ा। गन्धहस्ति शब्द समन्तभद्र का उपनाम या विशेषण भी नहीं था । यदि ऐसा होता तो उनके द्वारा लिखे गये महाभाष्य को गन्धहस्ति महाभाष्य कहा जा सकता था। परन्तु किसी भी ग्रन्थ में समन्तभद्र के साथ गन्धहस्ति शब्द का प्रयोग नहीं मिलता है। किसी ने भी किसी भी ग्रन्थ में 'गन्धहस्ति समन्तभद्र' ऐसा नहीं लिखा है। अतः इस विषय में दो बातें विशेषरूप से अन्वेषणीय हैं (1) 10वीं शताब्दी तक किसी भी विद्वान् को गन्धहस्तिमहाभाष्य का पता क्यों नहीं चला? (2) तथा इस महाभाष्य का नाम गन्धहस्ति क्यों हुआ? उक्त दोनों बातों का सही समाधान क्या है यह मेरी समझ में नहीं आ रहा है। यदि कोई विशिष्ट विद्वान् उक्त बातों का प्रामाणिक समाधान प्रस्तुत कर सकें तो बहुत अच्छा रहेगा। यहाँ एक बात यह भी विचारणीय है कि यदि गन्धहस्ति महाभाष्य नहीं था तो उसकी जनश्रुति कैसे प्रचलित हुई? ये सारी बातें बहुत ही रहस्यपूर्ण हैं और इनका कोई भी युक्तिसंगत समाधान दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है। गन्धहस्तिमहाभाष्य का परिमाण कितना था? जिन 8 विद्वानों ने गन्धहस्तिमहाभाष्य का उल्लेख किया है उनमें से केवल दो विद्वानों ने उसके परिमाण के विषय में लिखा है। एक विद्वान् ने लिखा है कि गन्धहस्तिमहाभाष्य 84 हजार श्लोक प्रमाण था तथा दूसरे विद्वान् ने लिखा है कि यह 96 हजार श्लोक प्रमाण था। इनमें से किसे प्रमाण माना जाय। जब किसी ने गन्धहस्तिमहाभाष्य को देखा ही नहीं है तब उसके परिमाण के विषय में कुछ लिखने को कल्पना ही कहा जा सकता है। उसे 84 हजार अथवा 96 हजार श्लोक प्रमाण होने का प्राचीन आधार क्या है, इसे जानने का मैंने प्रयत्ल किया किन्तु इसमें मुझे सफलता नहीं मिली। अतः उसके 84 हजार या
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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