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अनेकान्त/२५ 96 हजार श्लोक प्रमाण होने का कोई प्रामाणिक आधार नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि महाभाष्य के महत्त्व को बढ़ाने के लिए जिस विद्वान् को जितनी अधिक संख्या समझ में आई उसने उतनी अधिक संख्या लिख दी। क्या गन्धहस्तिमहाभाष्य विदेश में है?
कुछ लोगों की ऐसा मान्यता है कि गन्धहस्तिमहाभाष्य विदेश में पहुँच गया है। अभी गन्धहस्तिमहाभाष्य के विदेश में होने की एक नवीन सूचना ज्ञात हुई है। यह सूचना ख्यातिप्राप्त दिगम्बर जैन मुनि परमपूज्य श्री सुधासागरजी महाराज ने आप्तमीमांसा का परिचय देते हुए एक पुस्तक (आचार्य विद्यासागरजी महाराज के पद्यानुवाद संग्रह) में इस प्रकार दी है
__ "गन्धहस्तिमहाभाष्य जर्मनी में किसी जगह जमीन के अन्दर रत्नपिटारे में सुरक्षित रखा हुआ है।"
परन्तु उन्होंने यह नहीं लिखा कि उन्हें ऐसी सूचना किसी प्रत्यक्षदर्शी पुरुष ने जर्मनी से आकर दी है अथवा अन्य किसी स्रोत से प्राप्त हुई है। मैं समझता हूँ कि उन्होंने जो कुछ लिखा है उसका कोई प्रामाणिक आधार अवश्य होगा। अतः जैन समाज के प्रभावशाली नेताओं तथा उद्योगपतियों का कर्तव्य है कि वे सुरक्षित रखने वाले व्यक्ति को यथेष्ट अर्थराशि देकर गन्धहस्तिमहाभाष्य को जर्मनी से वापस लाने का पूर्ण प्रयत्न अवश्य करें। जब वह जर्मनी में सुरक्षित रखा हुआ है तब उसे वहाँ से वापस लाना असंभव नहीं है। क्या किसी दार्शनिक ग्रन्थ में गन्धहस्ति शब्द का उल्लेख है?
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि दिगम्बर परम्परा के किसी भी दार्शनिक ग्रन्थ में गन्धहस्ति शब्द दृष्टिगोचर नहीं होता है।
इसके विरीत श्वेताम्बर परम्परा के दार्शनिक ग्रन्थ 'स्याद्वादमंजरी' में दो बार गन्धहस्ति शब्द का उल्लेख उपलब्ध होता है। तथाहि -
(1) “यद्यपि अवयवप्रदेशयोः गन्धहस्त्यादिषु भेदोऽस्ति तथापि नात्र सूक्ष्मेक्षिकाचिन्तया।"-पृष्ठ 98
(2) "विशेषार्थिना नयानां नामान्वर्थविशेषलक्षणाक्षेपपरिहारादिचर्चस्तु