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अनेकान्त/२३ या प्रकरण मानते हैं। यदि ऐसा है तो आचार्य समन्तभद्र को आप्तमीमांसा के अन्त में ऐसा लिख देना चाहिए था-'इति गन्धहस्तिमहाभाष्ये प्रथमः प्रस्तावः समाप्तः।' यदि वे ऐसा लिख देते तो इस विषय में सारा सन्देह समाप्त हो जाता और यह निश्चित हो जाता कि आचार्य समन्तभद्र द्वारा रचित गन्धहस्तिमहाभाष्य अवश्य रहा है। परन्तु आचार्य समन्तभद्र ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है। प्रत्युत आप्तमीमांसा की अन्तिम कारिका
इतीयमाप्तमीमांसा विहिता हितमिच्छताम् ।
सम्यग्मिथ्योपदेशार्थविशेषप्रतिपत्तये।। 114।। से यही ज्ञात होता है कि यह कृति गन्धहस्तिमहाभाष्य का अंग न होकर एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है। गन्धहस्ति शब्द का अर्थ क्या है?
__ मैंने कई विद्वानों से गन्धहस्ति शब्द का अर्थ पूछा। किन्तु कोई भी विद्वान् इसके अर्थ को बतलाने में समर्थ नहीं हुआ। इसका मतलब यही है कि गन्धहस्ति शब्द निरर्थक (अर्थरहित) है। नामनिक्षेप के अनुसार किसी व्यक्ति का नाम 'गन्धहस्ति' रखा जा सकता है। जैसे किसी व्यक्ति का नाम 'हाथीसिंह' रख दिया जाता है तो इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है। किन्तु किसी शास्त्र को किसी विशेष कारण के बिना 'गन्धहस्ति' कहना उचित प्रतीत नहीं होता है। क्या गन्धहस्ति शब्द का प्रयोग तीर्थंकर के लिए होता है?
एक विशिष्ट विद्वान् ने लिखा है कि गन्धहस्ति शब्द का प्रयोग तीर्थंकर के लिए भी होता है। उनका यह कथन समझ में नहीं आया। 'जिनसहस्रनाम स्तोत्र' में भगवान् के 1008 नाम बतलाये गये हैं। इन 1008 नामों में भी 'गन्धहस्ति' नाम नहीं है। इन नामों में प्रत्येक नाम का एक निश्चित अर्थ है। ऐसा कोई नाम नहीं है जिसका कोई अर्थ न हो। यदि गन्धहस्ति शब्द तीर्थंकर के लिए प्रयुक्त होता है तो उसका कोई अर्थ अवश्य होना चाहिए। किसी विशेष अर्थ के बिना तीर्थंकर के लिए गन्धहस्ति शब्द का प्रयोग करना ठीक प्रतीत नहीं होता है। यदि कोई व्यक्ति कहता है कि 'गन्धहस्ति पार्श्वनाथ' समवशरण में विराजमान हैं तो