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अनेकान्त/२२ वरासूत्रितस्य तत्त्वार्थाधिगमस्य मोसशास्त्रस्य गन्धहस्त्याख्यं महाभाष्यमुपनिवघ्नन्तः स्याद्वादवियागुरवः श्री स्वामी समन्तभद्राचार्याः।"
(3) शाकटायन व्याकरणं के टीकाकार श्री अभयचन्द्र सूरि ने उपज्ञाते सूत्र की टीका में लिखा है
___ "आर्हतं प्रवचनं सामन्तभद्रं महाभाष्यम्।” इत्यादि। (4) धर्मभूषणयति ने न्यायदीपिका में लिखा है___ "तदुक्तं स्वामिभिर्महाभाष्यस्यादावात्ममीमांसा प्रस्तावे।"
(5) जैनसिद्धान्त भवन आरा में एक अपूर्ण ताड़पत्रीय ग्रन्थ है। यह तत्त्वार्थसूत्र की कोई टीका है। इसके लेखक का नाम ज्ञात नहीं हो सका है। इसके लेखक विद्वान् ने मंगलाचरण करते हुए लिखा है___तत्त्वार्थव्याख्यानषण्णवतिसहस्रगन्धहस्ति महाभाष्यविधायक देवागम कवीश्वर स्याद्वादविद्याधिपति समन्तभद्राय नमः।" इत्यादि । (6) कवि हस्तिमल्ल ने 'विक्रान्त कौरव' नाटक की प्रशस्ति में लिखा है___ "तत्त्वार्थसूत्र व्याख्यानगन्धहस्ति प्रवर्तकः।
स्वामी समन्तभद्रोऽभूदू देवागमनिदेशकः।।" (7) श्री अच्चपार्य ने 'जिनेन्द्र कल्याणाभ्युदय' नामक ग्रन्थ की प्रशस्ति में लिखा है
"तत्त्वार्थसूत्र व्याख्यानगन्धहस्ति विधायकः।
स्वामी समन्तभद्रोऽभूदू देवागम कवीश्वरः ।।" (8) श्री पं० बंशीधर शास्त्री ने स्वसम्पादित अष्टसहस्त्री की भूमिका में समन्तभद्राचार्य का परिचय देते हुए लिखा है
"भगवता समन्तभद्रेण गन्धहस्तिमहाभाष्यनामानं तत्त्वार्थोपरि टीकाग्रन्थ चतुरशीतिसहस्रानुष्टुभूमात्रं विरचयता" इत्यादि।
इन 8 उल्लेखों में सबसे प्राचीन उल्लेख चामुण्डराय (11वीं शताब्दी) का है और सबसे नवीन उल्लेख श्री पं० बंशीधर जी शास्त्री (20वीं शताब्दी) का है। क्या आप्तमीमांसा गन्धहस्तिमहाभाष्य का अंग है?
कुछ विद्वान् आप्तमीमांसा को गन्धहस्तिमहाभाष्य का प्रथम प्रस्ताव