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________________ अनेकान्त/१६ दशा में भी जीव सिद्ध के समान शुद्ध है तथा जीव कर्म से अबद्ध-अस्पृष्ट है वे सांख्यमतावलम्बी है, जैनमतावलस्बी नहीं। अतः विकार (रागादि भाव) आत्मा में हैं, यह भी सत्य है। यदि पर द्रव्य से सांसारिक सम्बधों को सर्वथा झूठा माना लाए तो “सीता राम की पत्नी थी", इत्यादि कथन सर्वथा झूठे सिद्ध हो जाएंगे। फिर वैसी स्थिति में या तो सीता राम के सिवा किसी अन्य की पत्नी थी, ऐसा मानना पड़ेगा (जो कि सर्वशास्त्रों से व सर्व दर्शनों से विरुद्ध है) या फिर ऐसा मानना पड़ेगा कि सीता किसी भी पत्नी नहीं थी। पर वैसी स्थिति में सम्यग्दृष्टि, अन्तरात्मा एकदेश जिन बलभद्र राम का सीता को ढूँढ़ने के लिए वनों में भटकना, रोना, बिलखना, बेहोश होना तथा रावण के पास जाकर अपनी सीता माँगना तथा मना करने पर रावण से युद्ध कार्य; ये सब कार्य हास्यापद सिद्ध होंगे-निष्प्रयोजन सिद्ध होंगे। परन्तु प्रयोजन बिना तो चींटी भी कार्य नहीं करती। फिर सम्यग्दृष्टि राम का कार्य निष्प्रयोजन कैसे माना जा सकता है? अतः संसार अवस्था में लोक में अनन्त असत्यों का लोप करके दो द्रव्यों के सम्बन्ध प्ररूपक एक सत्य में स्थापित कर देने वाला असद्भूत व्यवहार सर्वथा असत्य कैसे कहा जा सकता है? कदापि नहीं। यदि दो द्रव्य विषयक व्यवहार सर्वथा झूठ है तो हे ज्ञानियों! अग्नि से दूर क्यों भागते हो? पर असद्भूत व्यवहार कहता है कि अग्नि द्रव्यों को जलाती है, और अग्नि की पीड़ा (दाह) सही नहीं जाती, इसलिए हम भागते हैं। दो द्रव्य विषयक असद्भूत व्यवहार झूठ है तो केमच की फली तथा विद्युत् प्रवाह को हम क्यों नहीं छूते? क्यों डरते हैं। यदि असद्भूत व्यवहार मिथ्या होता तो अग्नि से हम दूर नहीं भागते, पर वैसा देखा नहीं जाता। अतएव भेदग्राही हो या विकारग्राही या दो द्रव्यों का सम्बन्धग्राही व्यवहार नय हो; सभी व्यवहारनय सत्य हैं। पर विशेष यह है कि सम्यग्दर्शन का विषयभूत आत्मा तो असम्बद्ध, अभेद ही है। आत्मा असम्बद्ध अभेदचिद्घन है उस पर दृष्टि करने से सम्यक्त्व होगा। इसी तरह हमें निर्विकार होना है, सिद्धवत् अकेला परद्रव्य से भिन्न होना है, अतः सम्यग्दर्शन का विषय अभेद, निर्विकार, परद्रव्यों से भिन्न ऐसा 'त्रिकाली ध्रुव सामान्य' होने से सम्यग्दर्शन के प्रकरण में सभी
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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