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________________ अनेकान्त/११ 0 पहले तीर्थंकर के माता-पिता की स्थापना मंजूषा आदि में की जाती थी किन्तु अज धनागम का मुख्य स्त्रोत बना लेने से व्यक्ति विशेष को यह पद दिया जाता है, जो परम्परा और आगम दोनों से विरुद्ध है। पूज्य आचार्य श्री विद्यानन्दजी महाराज ने तो किसी जीवित प्राणी में माता-पिता की स्थापना तो दूर, कल्पना करने तक का निषेध किया है। स्व० पं० मक्खनलालजी न्यायालंकार ने भी साधारण गृहस्थ को भगवान का माता-पिता बनाने को भगवान का घोर अपमान एवं महान् दोष माना है (देखें-आगम मार्ग प्रकाशक : पृष्ठ १६५-१६७)। वयोवृद्ध एवं अनुभवी प्रतिष्ठाचार्य पं० नाथूलालजी शास्त्री ने तो इस संदर्भ में कुछ बड़े ही सटीक प्रश्न उठाये हैं-"ब्रह्मचर्य व्रत लेकर भी माता क्या गर्भ में तीर्थंकर को लाने का संकल्प कर सकती है? माता को स्टेज पर पलंग पर सुलाना क्या उचित है? बड़े घर की महिलायें क्या जनता के सामने सो सकती हैं?" (देखें-प्रतिष्ठा प्रदीप : पृष्ठ २१) 0 मंत्र-संस्कारों से ही कोई मूर्ति पूज्य या प्रतिष्ठत होती है। इसीलिये पहले मूर्ति के आभ्यन्तर संस्कारों जैसे-गुणस्थान आरोहण, तिलकदान, अंकन्यास, अधिवासना नयनोन्मीलन, सूरिमंत्र, प्राणप्रतिष्ठा आदि क्रियाओं पर पूरा-पूरा ध्यान दिया जाता था। ये सम्पूर्ण क्रियायें सभी प्रतिष्ठेय मूर्तियों पर अलग-अलग किये जाने का विधान है किन्तु आजकल मंचीय कार्यक्रमों-बोलियाँ, नाटक, नृत्य, प्रहसन आदि की बाढ़ आ जाने और इन्हें ही पूरा महत्व दिये जाने से संस्कारारोपण के नाम पर कहीं-कहीं खानापूरी मात्र की जाती है, जो किसी भी तरह उचित नहीं है। वाह्य क्रियायें पंचकल्याणक महोत्सव के शरीर की तरह हैं, जबकि आंतरिक क्रियायें उसकी आत्मा के समान हैं। आत्मा यदि कृश होगी तो मूर्ति-प्रतिष्ठा अपूर्ण ही मानी जायेगी। ___पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं के अवमूल्यन के आधारभूत इन कारणों को हमें अविलम्ब दूर करना चाहिये। हमारे साधुवृन्द, प्रतिष्ठाचार्यों एवं विद्वानों का यह विशेष दायित्व है कि जो क्रियायें शास्त्रसम्मत नहीं हैं, उन्हें प्रोत्साहन न दें। प्रतिष्ठाओं में सादगी आनी चाहिये । प्रदर्शन या दिखावे से अहंकार का पोषण तो हो सकता है किन्तु मनःशन्ति एवं आत्मलाभ प्राप्त नहीं हो सकता।
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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