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________________ अनेकान्त/१० से परिवर्तन हुये हैं। पहले जहाँ इनके माध्यम से व्यक्ति और व्यक्तिसमूह के आचार-विचार को निर्मल बनाने पर जोर रहता था, वहाँ अब इन्हें मेला या प्रदर्शनी सरीखी भव्यता प्रदान करना ही हमारा एकमात्र उद्देश्य बन गया है। प्रतिष्ठा-पात्रों का चयन पहले व्यक्ति की योग्यता को देखकर किया जाता था, वहाँ अब उसकी आर्थिक स्थिति देखकर होता है। आयोजकों की दृष्टि केवल इस बात पर रहती है कौन कितना पैसा खर्च कर सकता है। धन को महिमा-मंडित करने से गुणों की उपेक्षा हुई है और इस कारण इन प्रतिष्ठाओं की गरिमाओं में निरन्तर गिरावट आती जा रही है। 0 गत तीन या चार दशकों में हुये इस बदलाव को हम निम्न बिन्दुओं के रूप में रेखांकित कर सकते हैं पहले कोई एक पुण्यात्मा जीवन भर की संचित न्यायोपार्जित सम्पत्ति का सदुपयोग करते हुये पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कराता था किन्तु आज की प्रतिष्ठायें चन्दा और बोलियों पर निर्भर होकर रह गई हैं। स्व० पं० जगमोहनलालाजी शास्त्री का स्पष्ट मत था-"चन्दे या बोलियों से एकत्र धन (प्रायः नं० 2 का, जिसे ब्लैक मनी कहते हैं) से प्रतिष्ठा कराना शास्त्रविहित नहीं है। स्वात्म सम्पत्ति द्रव्येण अपने कमाये हुये द्रव्य से प्रतिष्ठा कराना चाहिये।" 0 पहले अपूर्ण मन्दिरों की प्रतिष्ठा नहीं होती थी किन्तु आज पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं के बाद भी मन्दिरों में राज-मजदूरों की कन्नी-वसूलियाँ महीनों बाद तक चलती रहती हैं। इससे प्रतिष्ठित मूर्ति का अविनय तो होता ही है, उनमें अतिशय भी नहीं आ पाता। अपूर्ण मन्दिर को पूरा करने के लिये इन प्रतिष्ठाओं के माध्यम से धन इकट्ठा हो जाता है, यह आयोजकों का सोच है और इसी के कारण ये प्रतिष्ठायें व्यावसायिक (धन कमाने की फैक्टरियाँ) बनकर रह गई हैं। इससे इनके धार्मिक स्वरूप को क्षति पहुँची है। 0 पहले प्रतिष्ठाओं में शुद्ध धुले हुये (प्रासुक) वस्त्रों का उपयोग किया जाता था। किन्तु आज इन्द्रगण एवं राजा-महाराजा आदि किराये के वस्त्र पहनकर अपना पार्ट अदा करते हैं। ठेकेदारों से किराये पर प्राप्त इन्हीं वस्त्रों का उपयोग रामलीला या उर्स आदि के समय आयोजित नाटकों या कव्वालियों में भी होता है। हमारी दृष्टि में इस चलन से मंच की पवित्रता भंग होती है।
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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