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वर्ष ५२
अनेकान्त वीर सेवा मंदिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ - अप्रैल-जून | वी.नि.सं. २५२५ वि.सं. २०५५-५६
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किरण २
अधम काज करि जग भरमावै जे जिनवाणी को वेचि उदर भरते हैं। कुल लाज छोड़कर अधम काज करते हैं।।
जो मोक्ष महल की ऊंची नीसरनी थी। संसार समुद्र के तारन की तरणी थी।। जिनवचन तनी आज्ञा सिर पर धरनी थी। तजि विनय धर्म को लोभ अग्नि जरते हैं।
जे जिनवाणी...... जो जिनवाणी को सदा काल अरचै हैं ले आठ दरव सों भाव सहित चरचै है तह सफल कमाई का बहुधन खरचै हैं ते उल्टा धन को लूट लेत परते हैं।
जे जिनवाणी...... जे जैन हितैषी बने प्रेम दिखलावें। जे धन दे पोथी लेय जिन के गुण गावें।। चटकीले लेख लिखाय जगत भरमा। भोले जन बिना विचार दाव में आवै।। 'चम्पा' ऐसे जन निज परहित करते हैं।।
जे जिनवाणी......