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अनेकान्त/३५
वृत्ति है, जिनका झरनों का जल पेय है, विद्यारूपी स्त्री से जिन्हें रति है तथा जिन्होंने सेवा रूपी अञ्जली नहीं बाँधी है, मैं उन्हें परमेश्वर मानता हूँ। विक्रम की सभा के नवरत्नों में क्षपणक का उल्लेख
धन्वन्तरिक्षपणकामरसिंह शंकुवेतालभट्टघटखपरकालिदासाः।
ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य ।।२ ___ यहाँ विक्रम की सभा के नवरत्नों में क्षपणक को गिनाया है, किन्तु उसका नाम नहीं लिखा। श्री सतीशचन्द्र विद्याभूषण ने इन्हें जैनाचार्य सिद्धसेन माना है। वेदान्तसूत्र के शांकरभाष्य का उल्लेख
वेदान्तसूत्र के शांकर भाष्य में द्वितीय अध्याय, दूसरा पाद ३३वें सूत्र नैकस्मिन्नसंभवात् की टीका में यों लिखा है
"निरस्तः सुगतसमयः विवसनसमय इदानीं निरस्यते। सप्त चैषां पदार्थाः सम्मता जीवाजीवामव बन्ध संवर निर्जरा मोक्षा नाम।
अर्थात् बौद्धमत का खण्डन किया। अब वस्त्र रहित दिगम्बरों (विवसन समय) का मत खण्डित किया जाता है। इनके सिद्धान्त में जीव, अजीव, आम्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्व हैं। महाभारत में अर्जुन को कृष्ण महाराज समझाते हुए कहते हैं__ आरोहत्स्वस्थे पार्थ गाण्डीवं च करे कुरु।
निर्जिता मेदिनी मध्ये निर्ग्रन्थो यस्य सम्मुखे।। अर्थात् हे अर्जुन! तुम हाथ में धनुष लेकर रथ के ऊपर चढ़ो; क्योंकि इस पृथ्वी पर इन्द्रियविजेता निर्ग्रन्थ दिगम्बर साधु जिनके सामने हैं, उसकी उन साधुओं के दर्शन से निश्चित रूप से विजय होगी।
-वर्द्धमान कालेज, बिजनौर (उ. प्र.)
१. मुनिः कोपीनवासास्यान्नग्नो वा ध्यानतत्परः । ___एवं ज्ञानपरो योगी ब्रह्मभूयाय कल्पते।। दयोदय पृ. २४ पद उद्धृत २. देशकालविमुक्तोऽस्मि दिगम्बरसुखोऽरम्यहमित्यादि। ३. देहमात्रावशिष्टो दिगम्बर आदि। जातरूपधरो भूत्वा इत्यादि। सन्यस्य