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________________ अनेकान्त/२१ दिए हैं। यथा-अर्द्धपुद्गलपरावर्तन स्थिति की जगह आन्तर्मुहूर्तिकी स्थिति चाहिए। तथैव क्षायिकस्य की जगह क्षायोपशमिकस्य चाहिए; इत्यादि। ८. धर्मरत्नाकर पृ. १८७ (जीवराज ग्रन्थमाला) में लिखा है श्रेणिकक्षितिपतिर्यथा वहन् क्षायिकं, तदनुरेवती परम्। आदिराजतनुजा सुदर्शनात् शिश्रियुः शिवपदं क्षणादपि ।।२४ ।। अर्थ-श्रेणिकराजा क्षायिक समकित से, रेवती उत्कृष्ट समकित से तथा आदिनाथ के पुत्र : उसी सम्यक्त्व से-ये सब के सब मोक्ष गए। समीक्षा-श्रेणिक मोक्ष नहीं गए वे तो प्रथम नरक में हैं। फिर वहाँ से निकलकर हजारों वर्षों बाद आगामी युग में प्रथम तीर्थकर बनेंगे फिर मोक्ष जाएँगे। (पुण्यासवकथाकोश पृ. ६३ (रामचन्द्र मुमुक्षु); महापुराण पर्व ७४ तथा श्रेणिक चरित) रेवती तो ब्रह्मस्वर्ग में गई है। आराधना कथाकोश कथा १०२ श्लोक ६६-६७ स्त्री को मोक्ष होता भी नहीं (धवल पु. २) एक जगह एक लेखक गलती कर लेता है तो उसकी कृति के सहारे बनने वाली सब कृतियों में गलतियाँ आगम का रूप धारण कर लिया करती हैं। ६. जीवकाण्ड (ज्ञानपीठ) भाग पृष्ठ २१५ तथा २६३ पर लिखा है-अस्यां चं द्विरूपघनद्विरूपधनाधन धारयोश्च सूच्यंगूलादीनां वर्गशलाकार्द्धच्छेदराशिः नोत्पद्यते; विरलनदेयक्रमेण तदुत्पत्तेः। अर्थ-इस द्विरूपवर्गधारा में तथा द्विरूपघनधारा एवं द्विरूपघनाघन धारा में सूच्यंगुल आदि की वर्गशलाका और अर्द्धच्छेदराशि उत्पन्न नहीं होती क्योंकि सूच्यंगल आदि विरलन देय के क्रम से उत्पन्न हुए हैं। समीक्षा-उक्त कथन; उसका भी मूलाधार कन्नड़ी टीका तथा आगे पृष्ठ २४३ की वृत्ति और उसकी भाषाटीका चिन्तनीय है। बात यह है कि सूच्यंगुल विरलन देय के क्रम से तो उत्पन्न हुआ है, पर समान विरलन व समान देय के क्रम से उत्पन्न नहीं हुआ है अतः उस द्विवर्गरूपधारा में उत्पन्न सूच्यंगुल के अद्धच्छेद भी उसी द्विरूपवर्गधारा में उत्पन्न हो जाते हैं। (देखो धवल १४/३७४ तथा ३७५) सूच्यंगुल के अर्द्धच्छेद द्विरूपवर्गधारा में कहाँ उत्पन्न होते हैं। ऐसा पूछने पर उसका उत्तर यह है कि पल्य के
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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