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अनेकान्त/२२
अर्द्धच्छेद जहाँ प्राप्त होते हैं उस वर्गस्थान के आगे वाले (ठीक तदनन्तरवर्ती) वर्गस्थान स्वरूप वे सूच्यंगुल के अर्धच्छेद = सूच्यंगुल के अर्द्धच्छेद : ऐसा होगा। यही बात तर्क, गणितशास्त्र से भी काय के माफिक स्पष्ट है। हाँ, इस सूच्यंगुल की वर्गशलाका जरूर द्विरूपवर्गधारा में उत्पन्न नहीं होती ; जो कि गणित युक्ति तथा आगम से स्पष्ट है। हम विस्तार भय से यहाँ नहीं लिखते हैं।
इसी तरह द्विरूपधनधारा एवं घनाघनधारा में भी उक्त आधार से प्ररूपणा करनी चाहिए।
१०. अध्यात्म रहस्य (आशाधरजी) प्रस्ता. पृ. २२ पर जुगलकिशोर जी मुख्तार लिखते हैं- “पुद्गल तथा काल द्रव्य अनन्त हैं।"
समीक्षा-पेन स्लिप वश ऐसी त्रुटि हो जाती है या फिर प्रिटिंग मिस्टेक हो। यहाँ ऐसा चाहिए-पुद्गल द्रव्य अनन्त तथा काल असंख्यात हैं।
आचार्य शिवसागर ग्रन्थमाला से प्रकाशित आदिपुराण (शास्त्राकार) में पृष्ठ ३४३ (पर्व १० श्लोक २५) में लिखा है कि “एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय ओर असैनी पंचेन्द्रिय जीव धर्मा नामक पहली पृथ्वी तक जाते हैं।" नोट--यह गलत लिखा है। एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक के जीव किसी भी नरक में नहीं जाते। मूल में तो इतना मात्र लिखा हे कि “प्रयान्ति असंज्ञिनो धर्माताम् ।" इसका अर्थ होता है कि असंज्ञी पंचेन्द्रिय पहले नरक तक जाते हैं। यही अर्थ ठीक है। जो अर्थ छपा है, वह खोटा है। (कारण देखो धवल ६/४५७)
१२. चर्चासंग्रह (पृ. ३०३) में आहारक शरीर इन्द्रियगोचर है कि नहीं। इस प्रश्न के उत्तर में श्रद्धेय ब्र. रायमल्ल ने लिखा है कि “आहारक शरीर के अंगोपांग होने से वह इन्द्रियगोचर हो, यह मेरा चिन्तन है।"
समीक्षा-आहारक शरीर सूक्ष्म है वह इन्द्रियगोचर नहीं है। कहा भी है-अप्पडिहया सुहुमा णाम आहार......(धवल १४/३२७) अन्यत्र भी लिखा है-औदारिकस्य इन्द्रियरूपलब्धिः तथा इतरेषां कस्मात् न भवति इति चेत् ? परं परं सूक्ष्मम् ? (रा. वा. २/३६/२१ तथा रा. वा. ५/२१५ धवल १/५६३ आदि) इन वाक्यों से स्पष्ट है कि आहारक शरीर सूक्ष्म होता है अतः इन्द्रियों