________________
को न विमुह्यति शास्त्र-समुद्रे
-पं. जवाहरलाल जैन, भीण्डर
प्रस्तुत सामग्री में जिनागम के कुल २३ प्रकरण हैं। जिन्हें यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है। इस सामग्री की पू. डॉ. साहित्याचार्य पन्नालालजी जबलपुर ने पू. त्यागीजी के साथ बैठकर वाचना की है। वाचना के उपरान्त कुल ३० विन्दुओं में से ७ विन्दु पृथक् करके शेष २३ बिन्दुओं को ही यहाँ प्रकाशित कराया जा रहा है।
मैं मंदबुद्धि हूं, अतः पाठकों से करबद्ध निवेदन है कि जो संशोधन उचित लगे उसे ही ग्रहण करें। मेरा कोई आग्रह नहीं है कि जो मैंने समीक्षा लिखी है वह सत्य ही हो।
___इस प्रस्तुत सामग्री का शीर्षक प्रो. डॉ. चेतनप्रकाशजी पाटनी, जोधपुर ने दिया है।
१. श्रीमद् राजचन्द्र जैन शास्त्रमाला से पं. फूलचन्द्र जी द्वारा सम्पादित लब्धिसार क्षणणासार की प्रस्तावना के पृ. ३१ पर लिखा है-“नागपुर के सेनगण मंदिर में कर्मकाण्ड टीका की एक हस्तलिखित प्रति उपलब्ध है। ......मूलसंघे महासाधुर्लक्ष्मीचन्द्रो यतीश्वरः। तस्य पादस्य वीरेन्द विबुधो विश्ववेदिनः ।।"........ नीचे लिखा है- “गोम्मटसार कर्मकाण्ड की दो टीकाएं हैं-एक ज्ञानभूषण भट्टारक रचित और दूसरी उनके शिष्य नेमिचन्द्र द्वारा रचित।"
समीक्षा-१. नागपुर के सेनगण मंदिर में जो कर्मकाण्ड की टीका होनी कहा गया है वह वास्तव में कर्मकाण्ड की टीका नहीं है, बल्कि कर्मकाण्ड के आधार पर संकलित, ऐसे कर्मप्रकृति (प्राकृत) ग्रन्थ की टीका है। २. कर्मकाण्ड की तो एक ही संस्कृत टीका है-नेमिचन्द्र रचित। ३. ऊपर