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________________ अनेकान्त / २६ का उल्लेख भी है, पर अभी तेरापंथी श्वेताम्बरों एवं तारणपंथी दिगम्बरों का उल्लेख सामान्य नहीं हुआ हैं भारत में जैनों की स्थिति प्रायः प्रत्येक प्रदेश में न्यूनाधिक मात्रा में पायी जाती है, पर लेखकों ने श्वेताम्बरों को उत्तर भारत में तथा दिगम्बरों को दक्षिण भारत में स्थित बताया है। (संभवतः उनकी यह धारणा ऐतिहासिक दृष्टि से होगी) । वे पश्चिम, मध्य एवं पूर्वी भारत को भूल से गये हैं । कुछ सैद्धांतिक मान्यताओं के कारण श्वेताम्बरों को अधिक उदार एवं लोकप्रिय माना गया है जबकि दिगम्बरों को अनुदार कहा गया है। उपवास केवल महिलायें करती हैं और बोलियां पुरुष लेते हैं। तीर्थ क्षेत्रों में सिद्ध क्षेत्रों तथा अतिशय क्षेत्रों का उल्लेख नहीं होता । इनमें गिरनार, सम्मेदशिखर एवं पावापुर ( कैलाश भी) शायद ही कभी आते हैं। आबू और शत्रुन्जय (कभी-कभी श्रवणवेलगोला) सम्भवतः कला सौष्ठव के कारण उद्धृत किये जाते हैं । I 6. कॉफमैन ने बताया है कि जैन प्रतिमायें बुद्ध प्रतिमाओं से भिन्न और अनाकर्षक होती हैं। इन प्रतिमाओं से करुणा और कोमलता की अभिव्यक्ति नहीं होती। जब उन्हें सजा देते हैं, तब तो वे और भयंकर लगती हैं । 7. सल्लेखना की प्रक्रिया को सभी में 'स्वयं भूखे मरने के रूप में लिया है। 8. जैनों ने काफी समय पूर्व मुनित्व की नग्नता के सिद्धांत को छोड़ दिया और आज तो काफी दिगम्बर मुनि भी सवस्त्र रहने लगे हैं। 2. 3. 4. 5. 9. जैनों में हिन्दुओं जैसी विशिष्ट साधनायें नहीं हैं, पर केश लुंचन, कठोर आसन, उत्तापना ध्यान, अधिक उपवास ( महावीर के 12 वर्ष के 4380 दिनों के तपस्वी जीवन में 4000 उपवास के दिन) आदि साधना की अतिवादी एवं विवेकशून्य प्रवृत्तियां हैं। पादरी मुरे के अनुसार, भिक्षाटन एवं रुक्ष भोजन भी विवेकशून्य प्रक्रियायें हैं 1 उपसंहार उपरोक्त संक्षिप्त विवरण से यह स्पष्ट होगा कि बीसवीं सदी के अन्त
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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