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________________ अनेकान्त/१७ कोई ऐसा धर्म हो जो अपने साधुओं को इतना बहुमान और आदर देता हो, जितना दिगम्बर जैन धर्म का श्रद्धालु श्रावक अपने साधुओं को देता है। उसकी श्रद्धा के अतिरेक का लाभ उठाकर आज कुछ साधु ऐसे भ्रष्ट मार्ग पर आ गए है। कि तन पर वस्त्र को छोड़कर आज उनके पास सब कुछ है। जाने के लिए कार, रहने के लिए ऐसे-ऐसे बंगले जिनके दर्शन उनकी 57 पीढ़ियों ने कभी नहीं किए थे, धनवान भक्त से बातचीत करने के लिए सेल्युलर फोन, देखने के लिए मॅहगे-मँहगे रंगीन टी.वी., खाने के लिए फ्रिज में जमाई हुई बढ़िया मलाई और कुल्फी तथा सुस्वादु भोजन, धन के नाम पर उनके या उनके भक्तों के नाम लाखों करोड़ों का बैंक बेलेन्स, बड़े-बड़े शहरों में खरीदी हुई बहमंजिली बेशकीमती कोठियाँ, शरीर पर लगाने को मॅहगे-मँहगे तेल, गर्मियों में पंखे और कूलर तथा जाड़ों में हीटर इत्यादि तथा प्रतिदिन सैकड़ों नर-नारियों द्वार चरणवन्दना और जय-जयकार, बैंडवाजे, रथ, हाथी, घोड़े, नृत्य और संगीत इन सब ठाठकाटों को देखकर हीनपुण्य व्यक्ति का भी मन मचल उठता है-काश! हम भी ऐसे मुनि बन जाते। मैं सोचता हूँ भगवान् ऋषभदेव, भगवान महावीर और शेप 22 तीर्थकर सर्वज्ञ और सर्वदर्शी थे, उन्होंने अपने ज्ञानचक्षु से निश्चित रूप से यह देख लिया होगा कि 20वीं सदी के अन्त में, शिथिलायी युग में या धर्मपतन के काल में निश्चित रूप से ऐसी गिरावट आएगी कि उनके तीर्थ के कुछ वक्र जड अनुयायी उनके सिद्धान्तों और उनके द्वारा दी गई आचारगत शिक्षा से खिलवाड़ करेंगे। अतः उन्होंने 'मग्गो हि मोक्खमग्गो सेसा उममग्गया सव्वे' कहकर अन्तरङ्ग और बहिरङ्ग निग्रंथ लिंग (नग्नत्व) को ही एकमात्र साधुमार्ग घोषित किया था, अन्य सभी मार्गों को उन्मार्ग घोषित किया था। आज वीतरागी नग्न दिगम्बर मुद्रा का सरागी नग्न दिगम्बर मुनियों द्वारा खुलकर मजाक उड़ाया जा रहा है। भगवान महावीर के बाद जैनसंघ के लिए वह सबसे बड़े दुर्भाग्य का दिन आया था, जब बारह वर्षीय दुर्भिक्ष होने पर श्रुतकेवली भद्रवाह के समय उत्तर भारत के कुछ साधुओं ने आपत्ति से रक्षा करने के लिा वस्त्र पहिनना प्रारम्भ कर दिया था। एक बार कहीं से भी शिथिलाचार प्रवेश करे. फिर उसका जड़मूल से निकलना बहुत कठिन होता है। यही हालत उस समय हुई थी।
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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