________________
साधु संस्था-खतरनाक मोड़ पर
____-डॉ. रमेश चन्द्र जैन
एक पत्र के 8 जुलाई 1999 के अंक में बालाचार्य उपाधि से विभूषित एक दिगम्बर जैन मुनि के सम्बन्ध में दुर्भाग्य से यह पढ़ने को मिला कि चातुर्मास उपरान्त आगामी नवम्बर माह में उनका (भट्टारक पद पर) पट्टाभिषेक समारोह आयोजित होगा। एक पञ्चकल्याणक महोत्सव में तपकल्याणक के दिन श्रवणबेलगोला के पीठाधीश भट्टारक स्वामी श्री चारुकीर्ति जी के सन्देशानुसार कोल्हापुर के भट्टारक श्री लक्ष्मीसेन जी, चेन्नई के भट्टारक श्री भवनकीर्ति जी तथा ज्वालामालिनी के भट्टारक श्री ललितकीर्ति जी की उपस्थिति में उपाधि से विभूषित पीठाधीश स्वस्ति श्री भट्टारक स्वामी बालाचार्य जी को डोली में बैठाकर नगर में भव्य शोभायात्रा निकाली जिसमें तीनों भट्टारक जी उपस्थित रहे। बीस हजार श्रद्धालुओं की अपार भीड़ देखते ही बनती थी, जगह-जगह जय-जयकार व नाच-गान इत्यादि।
इस समाचार से पूर्व 'धर्ममंगल' में एक दो मुनियों के विषय में कुछ और बातें पढ़ने को मिलीं जो अकल्पनीय और जैन साधु के विषय में अश्रुतपूर्व थीं। समझ में नहीं आता, हमारी साधु संस्था को आज हो क्या गया है? कहां हमने आचार्य भगवन्त कुन्दकुन्द के ग्रन्थ से सुना था
उवयरणं जिणमग्गे जहजाहरूवमिदि भणिदं ।
गुरुवयणं पि य विणओ सुत्तझयणं य णिद्दिष्टं।। अर्थात् जिनेन्द्र भगवान के मार्ग में पीछी और कमण्डलु के अतिरिक्त ये उपकरण कहे गऐ हैं - 1. यथाजात रूप (जन्मजात बालक के समान नग्न रूप), 2. गुरु के वचन, 3. विनय और 4. सूत्रों का अध्ययन।
आज के कुछ मुनियों को इन उपकरणों से सन्तोष नहीं। विश्व में शायद